बालक गणेश प्रसाद पाँचवी कक्षा में पढ़ता था । गणित में अनुत्तीर्ण होने पर शिक्षक ने उसे ‘फिसड्डी’ छात्र की उपाधि दी। गणेश के स्वाभिमान को गहरा धक्का लगा उसने गुरु जी के बताए अनुसार गणित पर ध्यान देना शुरू कर दिया कुछ ही समय बाद सफलता उसके चरण चूमने लगी। यही वाला डॉ. गणेश प्रसाद एक धुरंधर गणितज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

असफल होने के बाद भी जो कोशिश करना नहीं छोड़ते, हारते नहीं, टूटते नहीं, विश्वास को नहीं खोते वरन अदम्य साहस और भरपूर निष्ठा के साथ फिर-फिर से पुरुषार्थ करते हैं…. वे  अवश्य सफल होते हैं। ऐसे असंख्य लोगों के उदाहरण हैं जिन्हें प्रारंभ में असफलता हाथ लगी लेकिन उसे सफलता की सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ते गए और अंततः महान हुए ।

जो गुरु और शास्त्र सम्मत पुरुषार्थ एवं धैर्य का अवलम्बन लेता है, तीनों लोकों में ऐसी कोई उपलब्धि नहीं जो उसके लिए दुर्लभ हो। और तो और यदि वह ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु की आश्रित होकर वास्तविक पुरुषार्थ करे तो सारी उपलब्धियों के मिटने के बाद भी जो नहीं मिटता उस अमिट अंतरात्मा-परमात्मा का साक्षात्कार करके वह अपने सच्चिदानंद स्वभाव में भी स्थित हो सकता है । अपने संपर्क में आने वाले को खुशहाल कर सकता है उसके संपर्क में आने वालों की 21 पीढ़ियाँ तर जाती हैं।

~लोक कल्याण सेतु / अप्रैल २०१५