समय का महत्व बताती हुई प्रेरणादायी आज की कहानी बच्चों को अवश्य सुनाएँ।

    ~गुरु-सन्देश~
“विद्यार्थीकाल सद्गुणों के उपार्जन, चरित्र-निर्माण व सुषुप्त योग्यताओं को विकसित करने का सुनहरा अवसर है । यदि यह अवसर खो दिया तो फिर जीविकोपार्जन में लगने के बाद इन सबके विकास के लिए कितना समय मिल पायेगा ! किंतु इस बात से अनजान विद्यार्थी प्रायः अपने कीमती समय को टी.वी., सिनेमा आदि देखने में तथा चरित्रभ्रष्ट करनेवाली फालतू पुस्तकें पढ़ने में बरबाद कर देते हैं । बड़े धनभागी हैं वे विद्यार्थी जो मिली हुई समय-शक्ति का सदुपयोग कर अपने जीवन को महानता के पथ पर अग्रसर कर लेते हैं ।”

बात उस समय की है जब गांधीजी साबरमती आश्रम में थे । एक दिन एक गाँव के कुछ लोग उनके पास आकर कहने लगे : ‘‘बापू ! कल हमारे गाँव में एक सभा हो रही है । यदि आप समय निकालकर जनता को देश की स्थिति व स्वाधीनता के विषय में कुछ मार्गदर्शन देंगे तो बड़ी कृपा होगी ।’’

 गांधीजी : ‘‘कार्यक्रम का समय क्या है ?’’

‘‘शाम चार बजे ।’’

गांधीजी ने अपने कल के कार्यक्रम देखकर स्वीकृति दे दी ।
 मुखिया बोला : ‘‘बापू ! मैं आपको लेने के लिए गाड़ी भेज दूँगा ।’’

अगले दिन जब पौने चार बजे तक मुखिया का आदमी नहीं पहुँचा तो गाँधीजी ने विचार किया कि  ‘यदि मैं समय से नहीं पहुँचा तो कितने लोगों का समय व्यर्थ ही नष्ट होगा और मैं उन्हें क्या जवाब दूँगा !’ वे थोड़े शांत हो गये । उन्हें एक तरीका सूझा और उसीका उन्होंने तुरंत अमल किया । कुछ समय बाद मुखिया गाँधीजी को लेने आया परंतु वे वहाँ नहीं मिले । निराश व चिंतित मन से मुखिया सभास्थल पर पहुँचा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उसने देखा कि गांधीजी भाषण दे रहे हैं और सभी लोग तन्मयता से सुन रहे हैं ।

भाषण के बाद मुखिया गांधीजी से पूछने लगा : ‘‘मैं आपको लेने आश्रम गया था लेकिन आप वहाँ नहीं मिले, फिर आप यहाँ तक कैसे पहुँचे ?’’

गांधीजी :  ‘‘जब आप पौने चार बजे तक नहीं पहुँचे तो मुझे चिंता हुई कि मेरे कारण इतने लोगों का समय नष्ट हो सकता है, इसलिए मैंने साइकिल उठायी और तेजी से चलाते हुए यहाँ पहुँच गया ।’’ 

मुखिया शर्म से पानी-पानी हो गया और देर होने के लिए माफी माँगने लगा । 

 तब गाँधीजी ने कहा : ‘‘समय बहुत मूल्यवान होता है । हमें प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए । किसी भी व्यक्ति की प्रगति में समय महत्त्वपूर्ण होता है । मेरे जैसे साधक के लिए तो समय की पाबंदी जीवन-साधना का अनिवार्य अंग हो जाती है ।’’ मुखिया को समय की महत्ता समझ में आ गयी ।

 ~ सीख : जो समय को बरबाद करता है उसका जीवन भी बरबाद हो जाता है । समय का सदुपयोग करनेवाले का जीवन आबाद हो जाता है । सब कुछ देकर बीते हुए समय का एक क्षण भी वापस नहीं पा सकते हैं ।

 ~ संकल्प : हम भी सावधानी पूर्वक समय का खूब ख्याल रखेंगे।