दैव उन्हीं की सहायता करते हैं, जो दृढ़ पुरुषार्थ करते हैं । -पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता सभी कार्य में सफलता का साधन हैं । दूसरे का सहारा लेने वाले व्यक्ति हर कार्य में असफल होते देखे गए हैं और जिन्होंने अपने पुरुषार्थ व विवेक का सहारा लिया है वे ही चमके हैं तथा उनका ही नाम इतिहास में दर्ज हुआ है। केशवराव उन्हीं लोगों में से एक थे । उनके जीवन की एक घटना उनके आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता का पुख्ता सबूत है । 

अढ़ेगाँव में केशवराव के मित्र का घर था ।
उनके पुत्र का व्रतबन्धन-समारोह था जिसमें केशवराव भी आमन्त्रित थे। केशवराव अपने चार स्वयंसेवकों सहित वहाँ पहुँचे, समारोह के अंत में भोजन की व्यवस्था की गयी थी । भोजन करने में काफी विलम्ब हो गया, शाम भी होने लगी। दूसरे दिन नागपुर में संघ की सभा आयोजित की गयी थी, जिसमें केशवराव की उपस्थिति अनिवार्य थी!  यातायात के साधनों का भी अभाव था…। नागपुर को जानेवाली अंतिम गाड़ी भी निकल चुकी थी ।

काफी इंतजारी के बाद भी जब कोई साधन न मिला तो स्वयंसेवक उदास हो गए परंतु केशवराव के चेहरे पर परेशानी की एक शिकन भी नहीं थी ।

उन्होंने स्वयंसेवकों से कहा :”हमें अपना सफर पैदल ही तय करना होगा।”
एक सज्जन ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा :”परंतु यहाँ से नागपुर की दूरी 32 मील है, इतना लम्बा मार्ग पैदल नहीं जाया जा सकता।”

लेकिन केशवराव ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा :”तो क्या हुआ ? हम रातभर चलेंगे और सुबह संघ की सभा में अवश्य पहुँचेंगे।”
लोगों ने बहुत समझाया परंतु वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। सबसे विदा लेकर स्वयंसेवकों सहित पैदल ही नागपुर की ओर चल पड़े ।

परम दयालु परमात्मा भी सहायता किये बिना कैसे रह सकते थे ? अभी मुश्किल से वे दस मील ही चले होंगे कि एक अनजान ड्राइवर ने अपनी गाड़ी रोकी…

इनके पास आया और बोला :”अरे ! इतनी रात पैदल कहाँ जा रहे हैं ?”
केशवराव ने उत्तर दिया :”मित्र के निमंत्रण से आ रहे हैं । कल नागपुर में सभा है,पहुँचना जरुरी है। मोटर नहीं मिली सो पैदल ही चल पड़े।”
ड्राइवर ने कहा : “आइये,बैठिये ! मैं भी उधर ही जा रहा हूँ।”

केशवराव आगे बैठ गए और चारों स्वयंसेवक पीछे के हिस्से में। रात को 1 बजे वे नागपुर पहुँचे और सुबह सभा को संबोधित किया । 
सत्य ही है – दैव उन्हीं की सहायता करते हैं,जो दृढ़ पुरुषार्थ करते हैं ।

शिक्षा : “महाभारत” के अनुसार भाग्यवादियों के पास तो हमेशा असफलता ही आती है । पुरुषार्थ खेत है और बीज के संयोग से ही अनाज पैदा होता है ।
समर्थ रामदास ने कहा है कि हमें अपने जीवन में पुरुषार्थी बनना होगा तभी हम अपने जीवन संग्राम में सफल हो सकेंगे। उद्यमहीन व्यक्ति तो मरे हुए के समान है । प्रयत्न देवता है और भाग्य दैव !! इसलिए प्रयत्न देव की उपासना करना ही श्रेयस्कर है।

~लोक कल्याण सेतु/अगस्त-सित. २००४/८६