भगवान झुलेलाल (Lal Jhulelal) का अवतार माने प्रेरणा देने वाला अवतार…दुष्ट प्रकृति के मरख जैसे धर्मान्धों के साथ लोहा लेने की प्रेरणा देने वाला अवतार…!!
जब भगवान झुलेलाल (Bhagwan Jhulelal) काअवतरण हुआ तब उनकी माँ देवकी ने उन्हें पयपान ( दुग्धपान ) कराना चाहा, लेकिन बालक पयपान करे ही नहीं ! वैद्यों को बुलाया गया, बालक की नजर उतारी गयी फिर भी बालक ने पयपान न किया…
आखिर बालक से ही प्रार्थना की गयी : ‘‘बालक ! तू कौन है ? दुग्धपान क्यों नहीं करता ?”
जैसे श्री कृष्ण ने मुख खोलकर उसमें यशोदाजी को त्रिलोकी दिखा दी थी, ऐसे ही भगवान झुलेलाल ने मुख खोला तो उसमें लहराता हुआ समुद्र दिखा और जीव-जलचर आदि भी दिखे !
माँ थोडी शांत हो गयी तो उसे अंतःप्रेरणा हुई कि ‘हम खिलाकर खाते हैं…’ जीव का स्वभाव है अकेले खाना और ईश्वर का स्वभाव है खिलाकर खाना। माँने लोगों से यह बात कही। लोग समुद्र-किनारे गये और चावल, गुड आदि चीजें समुद्री जीव-जंतुओं के लिए डालीं। मीठे चावल भी डाले। फिर समद्रु का जल लाकर घर मे छिडकाया।
जब बालक पर भी अजंलि डाली गयी तब उसने दूध पीना शुरू किया। ५ वर्ष की उम्र के बाद में बालक को पढने के लिए भेजा गया। उनकी बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि ब्राह्मण उन्हें जितना पढाता था उससे आगे का भी वे सुना देते थे। ८ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने वेद-वेदान्त और नीति शास्त्र के सारे ग्रंथों का सार समझ लिया।
एक दिन वे अपने पिता के साथ थे। मार्ग में उन्हें एक ऋषि मिले। भगवान शिव ही ऋषि रूप में आये थे !
पिता ने प्रार्थना की : ‘‘ऋषिवर ! आप मेरे इस बालक को मंत्रदीक्षा देने की कृपा करें।”
इतने में गोरखनाथ जी गुजरे। उन्होंने लीला कर रहे भगवान झुलेलाल और भगवान शंकर को पहचान लिया।
भगवान शंकर ने पिता रत्नराय से कहा : ‘‘ये जोगी गोरखनाथ हैं। ये ही बालक को मंत्रदीक्षा दें तो उचित होगा।”
भगवान शंकर ने कहा : ‘‘गोरखनाथ ! आप इस बालक को दीक्षा दो।”
गोरखनाथ जी : ‘‘यह बालक तो जन्मजात सिद्ध है। ये भगवान वरुण केअवतार हैं और धर्म की स्थापना करने के लिए आये हैं। इनको मैं कैसे दीक्षा दूँ ?”
शिवजी ने कहा : ‘‘मर्यादा स्थापित करने के लिए अवतार स्वयं गुरु से दीक्षा लेते हैं।”
श्री रामजी ने रामावतार में और श्री कृष्ण जी ने कृष्णावतार में ब्रह्मनिष्ठ गुरु की शरण ली थी। अतः झुलेलाल को आप मंत्रदीक्षा दें। आज्ञा शिरोधार्य करके जोगी गोरखनाथ ने झुलेलाल जी को मंत्रदीक्षा दी और कहा : ‘‘आप ‘जींद पीर’ होकर पूजे जाओगे और जो आपके प्रतीकों – जल और ज्योत की उपासना करेंगे, आपका स्मरण कर अपना मनोबल, चरित्रबल एवं श्रद्धाबल बढायेंगे, वे इहलोक सुखी – परलोक सुखी पद को पायेंगे।