When is Chaturmas 2021 Start Date, Chaturmast Mahatma, Importance, Kya Kare, Kya Nahi Kare, Food Not to Eat in Chaturmasya:

‘स्कंद पुराण’ के ब्राहा खण्ड के अंतर्गत चातुर्मास माहात्म्य में आता है :

आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक, वर्षाकालीन इन चार महीनों में भगवान विष्णु शेषशय्या (इन्द्रियाँ नहीं, मन नहीं, बुद्धि नहीं, नेति-नेति के बाद जो शेष) पर शयन करते हैं । श्रीहरि की आराधना के लिए यह पवित्र समय है ।

सब तीर्थ, देवस्थान, दान और पुण्य चतुर्मास आने पर भगवान विष्णु की शरण लेकर स्थित होते हैं। तीर्थ में स्नान करने पर पापों का नाश होता है ।

जो मनुष्य जल में तिल और आँवले का मिश्रण अथवा बिल्वपत्र डालकर उस जल से स्नान करता है, उसमें दोष का लेशमात्र भी नहीं रह जाता ।

चतुर्मास में बाल्टी में एक-दो बिल्वपत्र डालकर ‘ॐ नमः शिवाय’ का 4-5 बार जप करके स्नान करें तो विशेष लाभ होता है। इससे वायुप्रकोप दूर होता है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है ।

चतुर्मास में भगवान नारायण जल में शयन करते हैं, अतः जल में भगवान विष्णु के तेज का अंश व्याप्त रहता है । इसलिए उस तेज से युक्त जल से स्नान समस्त तीर्थों से भी अधिक फल देता है । ग्रहण के सिवाय के दिनों में संध्याकाल में और रात को स्नान न करे । गर्म जल से भी स्नान नहीं करना चाहिए ।

चतुर्मास सब गुणों से युक्त उत्कृष्ट समय है । उसमें श्रद्धापूर्वक धर्म का अनुष्ठान करना चाहिए ।

यदि मनुष्य चतुर्मास में भक्तिपूर्वक योग के अभ्यास में तत्पर न हुआ तो निःसंदेह उसके हाथ से अमृत गिर गया ।

बुद्धिमान मनुष्य को सदैव मन को संयम में रखने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि मन के भलीभाँति वश में होने से ही पूर्णतः ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

परद्रव्य का अपहरण और परस्त्रीगमन आदि कर्म सदा सब मनुष्यों के लिए वर्जित हैं चतुर्मास में इनसे विशेषरूप से बचना चाहिए चतुर्मास में धर्म का पालन, सत्पुरुषों की सेवा, संतों के दर्शन, सत्संग-श्रवण, भगवान विष्णु का पूजन और दान में अनुराग दुर्लभ माना गया है ।

जो चतुर्मास में भगवान की प्रीति के लिए अपने प्रिय भोग का प्रयत्नपूर्वक त्याग करता है, उसकी त्यागी हुई वस्तुएँ उसे अक्षय रूप में प्राप्त होती हैं । जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक प्रिय वस्तु का त्याग करता है, वह अनंत फल का भागी होता है ।

धातु के पात्रों का त्याग करके पलाश के पत्ते में भोजन करनेवाला मनुष्य ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है । चतुर्मास में काला और नीला वस्त्र पहनना हानिकारक है । इन दिनों में केशों को सँवारना (हजामत करवाना) त्याग दे तो वह मनुष्य तीनों तापों से रहित हो जाता है ।

इन चार महीनों में भूमि पर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन, पत्तल में भोजन, उपवास, मौन, जप, ध्यान, दान-पुण्य आदि विशेष लाभप्रद होते हैं ।

चतुर्मास में परनिन्दा का विशेष रूप से त्याग करे । परनिन्दा को सुननेवाला भी पापी होता है ।

परनिन्दा महापापं परनिन्दा महाभयम् ।
परनिन्दा महा दुःखं न तस्याः पातकं परम् ॥
परनिन्दा महान पाप है, परनिन्दा महान भय है, परनिंदा महान दुःख है और परनिन्दा से बढ़कर दूसरा कोई पातक नहीं है । (स्कंद पु. ब्रा. चा. मा. : 4.25)

व्रतों में सबसे उत्तम व्रत है -ब्रह्मचर्य का पालन। ब्रह्मचर्य तपस्या का सार है और महान फल देनेवाला है । इसलिए समस्त कर्मों में ब्रह्मचर्य बढ़ायें । ब्रह्मचर्य के प्रभाव से उग्र तपस्या होती है । ब्रह्मचर्य से बढ़कर धर्म का उत्तम साधन दूसरा नहीं है ।

विशेषतः चतुर्मास में यह व्रत संसार में अधिक गुणकारक है, ऐसा जानो । यदि धीर पुरुष चतुर्मास में नित्य परिमित अन्न का भोजन करता है तो वह सब पातकों का नाश करके वैकुंठ धाम को पाता है । चतुर्मास में केवल एक ही अन्न का भोजन करनेवाला मनुष्य रोगी नहीं होता । जो मनुष्य चतुर्मास में प्रतिदिन एक समय भोजन करता है उसे ‘द्वादशाह यज्ञ’ का फल मिलता है ।

जो मनुष्य चतुर्मास में केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्रों पाप तत्काल विलीन हो जाते हैं । जो चतुर्मास में प्रतिदिन केवल जल पीकर रहता है, उसे रोज-रोज अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।

पंद्रह दिन में एक दिन संपूर्ण उपवास करे तो वह शरीर के दोषों को जला देता है और चौदह दिनों में भोजन का जो रस बना है उसे ओज में बदल देता है ।

उपवास, भगवद्-सुमिरन, ध्यान और एकादशी के उपवास की बड़ी भारी महिमा है । वैसे तो गृहस्थ को महीने में केवल शुक्लपक्ष की एकादशी रखनी चाहिए परंतु चतुर्मास की तो दोनों पक्षों की एकादशियाँ रखनी चाहिए ।

चतुर्मास में भगवान नारायण योगनिद्रा में शयन करते हैं इसलिए इन चार मासों में शादी-विवाह और सकाम यज्ञ नहीं होते । ये चार मास तपस्या करने के हैं ।

– लोक कल्याण सेतु, जुलाई-अगस्त 2006

20 जुलाई 2021