शिवरात्रि व्रत-महिमा | Shivratri Vrat Mahima
- शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से एक शिकारी भगवान वीरभद्र होकर पूजे जा रहे हैं ।
- ‘स्कंद पुराण’ के केदारखंड में शिवरात्रि व्रत महिमा की एक कथा आती है :
- एक चांडाल पशु-पक्षियों को मारता, उनका खून पीता, मांस खाता और उनका चमड़ा बेचकर जीवन का निर्वाह करता था । उसने एक विधवा ब्राह्मणी को फुसलाकर अपने पास रख लिया । उसके गर्भ से एक बालक पैदा हुआ जिसका नाम रखा गया- दुस्सह । दुस्सह भी अपने पिता की तरह ही दुष्कर्म करने लगा ।
- एक बार उसे जंगल में शिकार के लिए भटकते-भटकते रात हो गयी और वह रास्ता भूल गया । एक पेड़ पर चढ़कर उसने चारों ओर देखा तो कहीं दूर एक दिया जल रहा था । भूख-प्यास से व्याकुल दुस्सह वहाँ गया ।
- वहाँ एक छोटा-सा शिव मंदिर था और एक संत की कुटीर थी । संत पूजा में बैठे हुए थे । अब उठेंगे… तब उठेंगे… इस प्रकार राह देखते-देखते पूरी रात बीत गयी । दैवयोग से वह रात्रि शिवरात्रि थी । दुस्सह का अनजाने में शिवरात्रि-जागरण हो गया और खाने-पीने के लिए कुछ न मिलने से उपवास भी हो गया । सुबह हुई तब संत ने दुस्सह से कहा : “बेटा ! नहा ले ।”
- दुस्सह ने नहा-धोकर संत के कहे अनुसार ‘ॐ नमः शिवाय’ का उच्चारण कर शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाये । उसे उन संत का सत्संग मिला। समय पाकर दुस्सह मर गया । शिवरात्रि जागरण, संत दर्शन, उनके दो वचनों का श्रवण और शिव मंत्र के जप के अलावा उसके जीवन में और कोई पुण्य न था । इस पुण्य से वह अगले जन्म में राजा विचित्रवीर्य बना । कहाँ तो एक शिकारी, जो खरगोश, हिरण आदि प्राणियों के पीछे मारा-मारा फिरता था और कहाँ संतदर्शन, अनजाने में शिवरात्रि-जागरण और शिव मंत्र के जप के प्रभाव से अगले जन्म में एक राजा बन गया !
- उसकी पूर्वजन्म की स्मृति बनी रही, जिसके प्रभाव से इस जन्म में भी वह शिवजी का पूजन अर्चन करता था । भगवान शिव और संतों में उसकी प्रीति थी । उसके राज्य में लोग बोलते थे कि ‘यह शिवभक्त राजा विचित्रवीर्य का राज्य है ।’
- राजा विचित्रवीर्य ने राज्य तो किया किंतु राज्य के अहंकार से फूला नहीं। भोगों में तो रहा किंतु भोगों की दलदल में फंसा नहीं । राजगद्दी पर तो रहा किंतु राजगद्दी के दोष उसमें आये नहीं। उसके दिल में तो भगवान शिव की गद्दी थी और संतों का सत्संग था ।
- उसने कई शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, साधु-संतों की सेवा की और शिव भक्ति का प्रचार किया। इन सबका इतना भारी पुण्य हुआ कि मृत्यु के पश्चात् राजा सायुज्य मुक्ति को प्राप्त हुआ । पुण्य के प्रभाव से उसने शिवजी की लीला में सहयोग देने के लिए शिवजी से ही दिव्य जन्म प्राप्त किया ।
- दक्ष के यज्ञ में जब सती ने योगशक्ति से अग्नि प्रकट करके शरीर छोड़ दिया, तब दक्ष के यज्ञ का ध्वंस करने के लिए शिवजी ने अपनी जटा उखाड़कर उसे पर्वत शिखर पर क्रोधपूर्वक दे मारा । उसीसे वीरभद्र का प्राकट्य हुआ । वीरभद्र पूर्वकाल का राजा विचित्रवीर्य ही था । शिवजी ने उसे दक्ष का यज्ञ-ध्वंस करने के लिए भेजा । यज्ञ-ध्वंस करके जब वीरभद्र कनखल से कैलाश जा रहे थे, तब हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच में एक स्थान पर उन्होंने थोड़ा आराम किया था । बाद में वहाँ पर उनका मंदिर बनाया गया, जो आज भी मौजूद है । उस स्थान के पास हरिद्वार से ऋषिकेश जानेवाली बसें रुकती हैं । वह जगह ‘वीरभद्र’ नाम से प्रसिद्ध है । शिव भक्ति की कैसी महिमा है कि उसके प्रभाव से एक शिकारी भगवान वीरभद्र होकर पूजे जा रहे हैं ।
-
– ऋषि प्रसाद, फरवरी 2004