Shri-Guru-Vandana
Jai Sadguru Devan Dev Varam Lyrics MP3 PDF

Jai Sadguru Devan Dev Varam: Play Now

Jai Sadguru Devan Dev Varam Lyrics

श्रीगुरु वंदना

जय सद्गुरु देवन देव वरं, निज भक्तन रक्षण देह धरं ।
पर दुःख हरं सुख शांति करं, निरुपाधि निरामय दिव्य परं ॥1॥
‘हे सद्गुरुदेव ! आपकी जय हो । आप देवों के देव हैं, सबसे श्रेष्ठ हैं । आपने अपने भक्तों के रक्षण हेतु पृथ्वी पर मानव-शरीर धारण किया है अर्थात अवतार लिया है । परदुःख का हरण कर सुख-शांति का दान देनेवाले आप माया की उपाधियों से मुक्त, निरामय, दिव्य तथा त्रिगुण आदि से परे हो ।’

जय काल अबाधित शांतिमयं, जन पोषक शोषक ताप त्रयं ।
भय भंजन देत परम अभयं, मन रंजन भाविक भाव प्रियं ॥2॥
हे गुरुदेव ! आप काल से अबाधित हैं, शांतस्वरूप हैं । मानवमात्र के तीनों तापों को हर के उनका पोषण करनेवाले हैं । आप समस्त भयों को नष्ट कर परम अभय पद की प्राप्ति करानेवाले हैं । जिन्हें अपने प्रेमी भक्तों के निर्मल मन के भाव अतिशय प्रिय हैं, ऐसे आप उन प्रेमी भक्तों के मन को प्रभु प्रेम से रँगकर आनंद उल्लास से भर देते हैं । आप ही उन भक्तों के भावों का एकमात्र प्रिय आश्रय हैं आपकी जय हो ।’

ममातादिक दोष नशावत है, शम आदिक भाव सिखावत हैं ।
जग जीवन पाप निवारत है, भवसागर पार उतारत हैं ||3||
आप सांसारिक मोह-ममतादि दोषों का नाश करते हैं । शम, दम, तितिक्षा, समता, श्रद्धा, समाधान इन सद्गुणों को जीवन में लाने की शिक्षा-दीक्षा देकर इन्हें जागृत करते हैं । आप जगत के जीवों के पापों का निवारण करते हैं तथा भवसागर से पार करते हैं ।

कहूँ धर्म बतावत ध्यान कहीं, कहूँ भक्ति सिखावत ज्ञान कहीं ।
उपदेशत नेम अरु प्रेम तुम्हीं, करते प्रभु योग अरु क्षेम तुम्हीं ॥4॥
हे गुरुवर ! आप कभी धर्म का तो कभी ध्यान-धारणा का उपदेश देते हैं । कभी भक्ति का तो कभी ज्ञान का उपदेश देते हैं । इतना ही नहीं, आप यम-नियम, नीतिमत्ता-शिष्टाचार, सदाचार-सद्व्यवहार, विधि-निषेध आदि से संबंधित ईश्वरीय विधान के नियम बताकर जीवन में प्रभुप्रीति लाने का संदेश देते हैं । हे सर्वसमर्थ, सर्वाधार प्रभु ! आप स्वयं ही अपने भक्तों के योगक्षेम का वहन (अप्राप्त की प्राप्ति तथा प्राप्त की रक्षा) करते हैं ।’

मन इन्द्रिय जाही न जान सके, नहीं बुद्धि जिसे पहचान सके ।
नहीं शब्द जहाँ पर जाय सके, बिनु सद्गुरु कौन लखाय सके ॥5॥
जिसे मन और इन्द्रियाँ नहीं जान सकती, जिसको बुद्धि भी नहीं पहचान सकती, जहाँ शब्दमात्र का प्रवेश नहीं है अर्थात् वाणी भी जिसका वर्णन नहीं कर सकती, ऐसे आत्म-परमात्म पद को बिना सद्गुरु के कौन दिखा (अनुभव करा) सकता है ? अर्थात् अन्य कोई भी अनुभव नहीं करा सकता ।

नहीं ध्यान न ध्यातृ न ध्येय जहाँ, नहीं ज्ञातृ न ज्ञान न ज्ञेय जहाँ ।
नहीं देश न काल न वस्तु तहाँ, बिनु सद्गुरु को पहुँचाय वहाँ ॥6॥
जहाँ ध्यान, ध्याता (ध्यान करने वाला) और ध्येय में भेद नहीं, ज्ञान, ज्ञाता (जाननेवाला) और ज्ञेय में भेद नहीं और जहाँ न देश, काल, वस्तु ही है, ऐसे परम पद तक सद्गुरु के बिना कौन पहुँचा सकता है ?

नहीं रूप न लक्षण ही जिसका, नहीं नाम न धाम कहीं जिसका ।
नहीं सत्य असत्य कहाय सके, गुरुदेव ही ताही जनाय सके ॥7॥
जिसका न कोई रूप है न लक्षण है, न नाम है न धाम (निवासस्थान) है तथा जो सत्य असत्य दोनों से परे है, ऐसे परमात्म-तत्व का अनुभव एक सद्गुरु ही करा सकते हैं ।

गुरु कीन कृपा भव त्रास गयी, मिट भूख गयी छुट प्यास गयी ।
नहीं काम रहा नहीं कर्म रहा, नहीं मृत्यु रहा नहीं जन्म रहा ॥8॥
(जब शिष्य को पूर्ण गुरु की पूर्ण कृपा मिल जाती है, तब उसके हृदय से ऐसे उद्गार निकल पड़ते हैं : ‘हे करुणासिंधु गुरुदेव ! आपने मुझ पर कृपा कर दी और मेरी जन्म-मरण के चक्र की समस्त पीड़ाएँ दूर हो गयीं । मेरी विषय-सुख की भूख और तृष्णा मिट गयी । अब मेरी कोई कामना शेष नहीं है अतः मेरा कोई कर्तव्य नहीं रहा । अब मैं जन्म-मरण से मुक्त हो गया हूँ ।

भग राग गया हट द्वेष गया, अघ चूर्ण भया अणु पूर्ण भया ।
नहीं द्वैत रहा सम एक भया, भ्रम भेद मिटा मम तोर गया ॥9॥
हे सद्गुरुदेव ! आपकी कृपा से मेरे राग द्वेष दूर हो गये हैं, पाप नष्ट हो गये हैं तथा मेरा अति तुच्छ, क्षुद्र अहं आपके व्यापक स्वरूप में विलीन होकर ब्रह्मस्वरूप हो गया है । मेरे लिए अब कहीं भी द्वैत नहीं रहा, सर्वत्र एक समस्वरूप अद्वैत सत्ता की ही अनुभूति होने लगी है । मेरा भ्रम और ‘मेरे-तेरे’ का भेद मिट गया है ।’

नहीं मैं नहीं तू नहीं अन्य रहा, गुरु शाश्वत आप अनन्य रहा ।
गुरु सेवत ते नर धन्य यहाँ, तिनको नहीं दुःख यहाँ न वहाँ ॥10॥
‘अब न परिच्छिन्न ‘मैं’ रहा, न तू रहा और न ही अन्य ! बस एक अनन्य शाश्वत गुरुतत्व ही रहा । जो लोग ऐसे आत्मज्ञानी सद्गुरु की सेवा करते हैं, उनके सत्संग-सान्निध्य का लाभ उनके मार्गदर्शन में चलते हैं, वे सचमुच धन्य हैं उनके लिए इस लोक और परलोक में कहीं भी कोई दुःख शेष नहीं रहता ।’

Jay Sadguru Devan Dev Varam Download Mp3, PDF

Karaoke - Jai Sadguru Devan Dev Varam