एक बार नारद जी ने भगवान ब्रह्मा जी से कहा :

“ऐसा कोई उपाय बतलाइए, जिससे मैं विकराल कलिकाल के काल जाल में न फँसूं ।”

इसके उत्तर में ब्रह्माजी ने कहाः

आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निर्धूत कलिर्भवति ।

‘आदि पुरुष भगवान नारायण के नामोच्चार करने मात्र से ही मनुष्य कलि से तर जाता है ।’

सर्वशास्त्रों का मन्थन करने के बाद, बार-बार विचार करने के बाद, ऋषि-मुनियों को जो एक सत्य लगा, वह है भगवन्नाम ।
तुकारामजी महाराज कहते हैं-

‘नामजप से बढ़कर कोई भी साधना नहीं है । तुम और जो चाहो से करो, पर नाम लेते रहो । इसमें भूल न हो । यही सबसे पुकार-पुकारकर मेरा कहना है । अन्य किसी साधन की कोई जरूरत नहीं है । बस निष्ठा के साथ नाम जपते रहो ।’

इस भगवन्नाम-जप की महिमा अनंत है । इस जप के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं एवं अमंगल वेशवाले होने पर भी मंगल की राशि हैं । परम योगी शुकदेवजी, सनकादि सिद्धगण, मुनिजन एवं समस्त योगीजन इस दिव्य नाम-जप के प्रसाद से ही ब्रह्मनंद का भोग करते हैं । भवतशिरोमणि श्रीनारद जी, भक्त प्रह्लाद, ध्रुव, अम्बरीष, परम भागवत श्री हनुमानजी, अजामिल, गणिका, गिद्ध जटायु, केवट, भीलनी शबरी- सभी ने इस भगवन्नाम-जप के द्वारा भगवत्प्राप्ति की है ।

मीरा ने जप से बहुत ऊँचाई पायी थी। तुलसीदास जी ने जप से ही कवित्व शक्ति विकसित की थी ।

मध्यकालीन भक्त एवं संत कवि सूर, तुलसी, कबीर, दादू, नानक, रैदास, पीपा, सुन्दरदास आदि संतों तथा मीराबाई, सहजोबाई जैसी योगिनियों ने इसी जपयोग की साधना करके संपूर्ण संसार को आत्मकल्याण का संदेश दिया है ।

मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किन्तु गहरा होता है ।

जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मणरेखा को न लाँघ सका । हालाँकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था, किंतु ज्योंहि वह रेख को लाँघने की इच्छा करता त्योंहि उसके सारे शरीर में जलन होने लगती थी ।

  • भगवान के नाम का जप सभी विकारों को मिटाकर दया, क्षमा, निष्कामता आदि दैवी गुणों को प्रकट करता है।
  • मंत्रजप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं, जापक में सौम्यता आती जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है ।
  • मंत्रजप से चित्त पावन होने लगता है । रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं । दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं । सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है ।
  • जैसे, ध्वनि-तरंगें दूर-दूर जाती हैं, ऐसे ही नाम-जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहरे उतर जाती हैं तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं । इससे हमारे अंदर शक्ति-सामर्थ्य प्रकट होने लगता है और बुद्धि का विकास होने लगता है ।
  • मंत्रजप से शांति तो मिलती ही है, वह भक्ति व मुक्ति का भी दाता है ।
  • मंत्रजप करने से मनुष्य के अनेक पाप-ताप भस्म होने लगते हैं । उसका हृदय शुद्ध होने लगता है तथा ऐसे करते-करते एक दिन उसके हृदय में हृदतेश्वर का प्राकटय भी हो जाता है ।
  • मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है । मंत्रजप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है । यहाँ तक की जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुँचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है ।

जैसे पानी की बूँद को बाष्प बनाने से उसमें 1300 गुनी ताकत आ जाती है वैसे ही मंत्र को जितनी गहराई से जपा जाता है, उसका प्रभाव उतना ही ज्यादा होता है । गहराई से जप करने से मन की चंचलता कम होती है व एकाग्रता बढ़ती है । एकाग्रता सभी सफलताओं की जननी है ।

जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिर्न संशयः।

हे विद्यार्थियो ! तुम भी आसन-प्राणायाम आदि के द्वारा अपने तन को तन्दरुस्त रखने की कला सीख लो। जप-ध्यान आदि के द्वारा मन को मजबूत बनाने की युक्ति जान लो। संत-महापुरुषों के श्रीचरणों में आदरसहित बैठकर उनकी अमृतवाणी का पान करके तथा शास्त्रों का अध्ययन कर अपने बौद्धिक बल को बढ़ाने की कुंजी जान लो और आपस में संगठित होकर रहो। यदि तुम्हारे जीवन में ये चारों बल आ जायें तो फिर तुम्हारे लिए कुछ भी असंभव न होगा ।

~ मंत्रजाप महिमा एवं अनुष्ठान विधि साहित्य से