चाटुकार मंत्रियों के बहकावे में आकर एक बार अकबर ने बीरबल को नीचा दिखाने की एक युक्ति सोची । उसने राजदरबार मेें बीरबल के आने से पहले सभी दरबारियों को एक-एक अंडा देते हुए कहा : ‘‘इसे छुपाकर रख लो । हौज में डुबकी लगाने के बाद इस अंडे को लेकर बाहर
निकलना, पहले नहीं दिखना चाहिए ।’’
थोड़ी देर में बीरबल (Birbal) आये । अकबर (Akbar) ने कहा : ‘‘मुझे स्वप्न में एक फकीर ने सभी दरबारियों को परखने के लिए कहा है, साथ ही तरकीब भी बतायी है कि बगीचे के हौज में सभी डुबकी लगायें । जो वफादार होगा उसी को हौज में अंडा मिलेगा, दूसरे को नहीं ।’’
बीरबल को अकबर (Akbar Birbal) की चालबाजी समझ में आ गयी । अकबर (Akbar) के साथ सभी हौज के पास पहुँचे । सभी दरबारी एक-एक करके डुबकी लगाते और एक अंडा लेकर बाहर निकलते । जब बीरबल (Birbal) की बारी आयी तो बीरबल थोड़ा शांत हो गये । उन्होंने आज्ञाचक्र पर ध्यान करके गुरु-भगवान से तादात्म्य स्थापित किया और युक्ति मिल गयी । उन्होंने डुबकी लगायी और कुछ देर बाद ‘कुकड़ू कूँ… कुकड़ू कूँ…’ की आवाज करते हुए बाहर निकले ।
अकबर (Akbar) : ‘‘अरे बीरबल ! तुम्हें क्या हुआ, मुर्गे की तरह आवाज क्यों कर रहे हो ?’’
‘‘शुक्रिया जहाँपनाह ! आपने मुझे मुर्गा कहा, बाकी तो सब आपके पास मुर्गियाँ हैं जो अपने साथ अंडा लेकर निकली हैं, केवल मैं ही एक आपके पास मुर्गा हूँ ।’’
अकबर (Akbar) का सिर शर्म से झुक गया । सभी चुगलखोरों के मुख पर कालिख पुत गयी । आखिर अकबर को कहना पड़ा : ‘‘वाकई बीरबल ! तुम्हारा कोई जवाब नहीं, तुम लाजवाब हो !!’’