Birbal Ki Buddhi Ka Kamal [A Wisdom Story of Akbar and Birbal in Hindi]; Inteligent Birbal:

एक दिन अकबर के दरबार में बीरबल से ईर्ष्या करने वाले कुछ दरबारी व मंत्री बीरबल के विरुद्ध नारे लगा रहे थे । अकबर भी उनके झाँसे में आ गया और बीरबल को तुरंत सूली पर चढ़ाने का हुक्म दे दिया ।

सूली देखकर बीरबल तनिक भी न घबराया । दृढ़ श्रद्धापूर्वक मंत्रजप करने वाला बीरबल प्रत्युत्पन्न मति (त्वरित सही निर्णय लेने में सक्षम विलक्षण मति) से सम्पन्न हो चुका था । उसने बादशाह से आखिरी बार बात करने की इच्छा जतायी । बुलाये जाने पर बोला : “जहाँपनाह ! मैंने बाकी सारी चीजें तो आपको बता दीं पर मोती उगाने की कला आपको सिखा न सका ।”

सुनते ही अकबर के मुँह में पानी आ गया : “सुभान अल्लाह ! बीरबल ! तुम तो पाक रूह हो । यह नेक काम किये बगैर मैं तुम्हें कैसे विदाई दे सकता हूँ !”

बीरबल मन-ही-मन हँसा कि ‘वाह रे लोभी, धोखेबाज संसार ! तेरी नीयत कब, कैसे रूप धारण कर ले, कोई पता नहीं ! धन्य है गुरुज्ञान ! दुनिया भले वैरी बन जाय पर यह कभी साथ नहीं छोड़ता । 

बीरबल ने ईर्ष्यालुओं को सबक सिखाने के लिए जहाँपनाह से यह कहकर उनके मकान ढहवा दिये कि, “इस भूमि पर उत्तम मोती पैदा हो सकते हैं ।” फिर बीरबल ने वहाँ जौ बोवा दिये । कुछ दिनों बाद पौधे उगने पर उसने कहा : “कल प्रातः ये पौधे मोती उत्पन्न करेंगे और कल ही इन्हें काटा जायेगा ।”

लोग यह नजारा देखने के लिए एकत्र हुए । प्रातःकाल ओस की बूंदें जौ के पौधों व पत्तों पर मोती की तरह चमक रही थीं । बीरबल ने कहा : “अब आप लोगों में से जो सर्वथा निरपराधी हो, वह इन मोतियों को काट ले । पर सावधान ! यदि किसीने कभी एक भी अपराध किया होगा तो ये मोती पानी होकर गिर पड़ेंगे ।”

बीरबल की नजर अब मंत्रियों की ओर मुड़ गयी । वह बोला : “मंत्रिवर ! आप लोग अत्यंत ईमानदार, प्रजा हितैषी, बादशाह के निकटवर्ती हैं । आपके पावन चरित्र के प्रभाव से बादशाह का खजाना आज मोतियों से भरने वाला है । भाइयों ! मैं आपको आमंत्रित करता हूँ ।”

यह सुनते ही मंत्रियों के माथे पर चिंता-भय की लकीरें छाने लगीं । खुद के काले कारनामों की स्मृति उनके हृदयपटल पर उभर आयी । किसी की भी आगे बढ़ने की हिम्मत न हुई ।

तब बीरबल ने अकबर से कहा : “जहाँपनाह ! आप तो परम न्यायप्रिय, कर्तव्यनिष्ठ, प्रजावत्सल, सबसे नेक इन्सान हैं । मेरी आपसे दरख्वास्त है कि अपने कदम आगे बढ़ायें ।”

प्रजाजनों की नजरें अकबर पर केन्द्रित हो गयीं । अकबर की गर्दन शर्म से झुक गयी, नजरें धरती में गड़ गयीं ।

अकबर को एहसास हुआ कि, ‘बीरबल को दोषी कहने वाले दरबारी, मंत्री तथा स्वयं हम भी कितने दोषी व अपराधी हैं ! बीरबल निर्दोष है, उसे ईर्ष्यालुओं ने फँसाया है ।’ अकबर ने बीरबल की प्रत्युत्पन्न मति की सराहना करते हुए उसे बाइज्जत बरी किया व मंत्रिपद सँभालने के लिए मना लिया । 

जहाँ सारे संबंध मुँह मोड़ लेते हैं वहाँ गुरुकृपा ही शिष्य की पल-पल रक्षा करती है, उसे मार्गदर्शन व दिव्य प्रेरणा देकर संकटों से उबार लेती है ।

➢ लोक कल्याण सेतु, मार्च 2014