जिसका हृदय क्षमा, उदारता से भरा होता है तथा जो दूसरों के साथ मधुर, सांत्वना भरा व्यवहार करता है, दूसरों की अनुकूलता का खयाल रखता है उसके प्रति लोग सहज ही अनुकूल हो जाते हैं । यहाँ तक कि पराये या अनजान व्यक्ति भी सम्पर्क में आने मात्र से अपने बन जाते हैं ।

संत विनोबाजी (Vinoba Bhave) के दादाजी सबमें ईश्वरीय भाव रखनेवाले बड़े ही सज्जन व्यक्ति थे । एक बार पड़ोस का एक लड़का उनके रसोईघर में चुपके-से गया और गुड़ उठाकर मुँह में डाला और चलता बना । उसकी यह करतूत दादीजी ने देख ली । उन्होंने उसे डाँटा और दादाजी के पास लाकर गुस्से में कहा : ‘‘देखिये, इसने हमारे घर से गुड़ चुराया ।’’

संत-हृदय दादाजी (Dada ji)जानते थे कि ‘द्वेषपूर्वक या आवेश में आकर कठोर व्यवहार करने से या डाँट-मार से किसीको सुधारा नहीं जा सकता । कठोरता तो अपनों को भी पराया बना देती है ।’ अतः दादाजी ने दादी से कहा : ‘‘तुमने गलत समझा है । इसने गुड़ चुराया नहीं है, केवल बिना पूछे लिया है । यह घर भी तो इसी का है तो गुड़ इसका ही हुआ । अगर यह पूछकर लेता तो भी उसे गुड़ मिलता और बिना पूछे लिया तो भी मिला ।’’

फिर लड़के को प्रेम से समझाते हुए बोले : ‘‘बेटे ! कभी गुड़ खाने की इच्छा हो तो तुम माँग लेना ।’’

दादाजी के मधुरता भरे व्यवहार से लड़के का हृदय पश्चाताप से भर गया, वह रो-रोकर माफी माँगने लगा ।

रोते हुए लड़के को चुप कराने के लिए दादाजी ने बात पलटते हुए कहा : ‘‘अरे, जब तुमने गुड़ लिया था तो हाथ धोये थे कि नहीं ?’’ 

लड़के ने शांत होकर कहा : ‘‘नहीं ।’’

दादाजी ने समझाया कि ‘‘हमारे हाथों में हजारों कीटाणु होते हैं । जिनके पेट में चले जाने से व्यक्ति बीमार हो जाता है । इसलिए कुछ भी खाने से पहले हाथ जरूर धोेने चाहिए ।’’

दादाजी की प्रेम व हितभरी बातों ने लड़के का जीवन बदल दिया । उसकी चोरी की गंदी आदत छूट गयी ।

पूूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘मीठी और हितभरी वाणी से सद्गुणों का पोषण होता है, मन को पवित्र शक्ति प्राप्त होती है और बुद्धि निर्मल बनती है । प्रेम, सहानुभूति, मधुर वचन, सक्रिय हित, त्याग-भावना आदि से हर किसीको सदा के लिए अपना बना सकते हो ।’’

सामान्यतः व्यक्ति सोचता है कि लोग उसके मन के अनुकूल चलें परंतु जिसका हृदय क्षमा, उदारता से भरा होता है तथा जो दूसरों के साथ मधुर, सांत्वनाभरा व्यवहार करता है, दूसरों की अनुकूलता का खयाल रखता है उसके प्रति लोग सहज ही अनुकूल हो जाते हैं । यहाँ तक कि पराये या अनजान व्यक्ति भी सम्पर्क में आने मात्र से अपने बन जाते हैं । ऐसे व्यक्ति के लिए प्रकृति भी अनुकूल हो जाती है ।

संकल्प: हम भी सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करेंगे।