Guru MS Golwalkar, Former RSS Chief's Quote on Truth (Satya)

Guru MS Golwalkar Quote on Truth

  • संत-महापुरुषों का हमेशा ही समाज को संगठित करके राष्ट्र को समृद्ध व शक्तिशाली बनाने का उद्देश्य रहा है । परंतु तुच्छ स्वार्थपूर्ति के लिए दिग्भ्रमित हुए लोग अपने पदों का दुरुपयोग कर संतों-महापुरुषों व उनकी संस्थाओं पर अमानुषिक अत्याचार करते आये हैं ।
  • समाजसेवा के क्षेत्र में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ का अपना एक आदर्श स्थान है । एक समय था जब ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकरजी थे । उनका जन्म 19 फरवरी 1906 को नागपुर में हुआ था । उनका जीवन पिता श्री सदाशिवराव और माता श्रीमती लक्ष्मीबाई से प्राप्त सद्गुणों से सुसम्पन्न था ।
  • उन्होंने एक संत से भगवन्नाम की दीक्षा लेकर आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत की । साधनामय जीवन से उनके मन में वैराग्य का सागर उमड़ने लगा इसलिए वे हिमालय जाना चाहते थे परंतु उनके गुरुदेव ने उन्हें आज्ञा दी कि ‘‘समाजसेवा में हिमालय का दर्शन करो ।’’ गुरुआज्ञा शिरोधार्य कर वे संघ से जुड़कर समाजसेवा में तत्परता से लग गये । वे सदैव स्वयंसेवकों में धैर्य, उत्साह, साहस का संचार करते थे । गुरुनिष्ठा, गुरुआज्ञा-पालन, देशप्रेम जैसे सद्गुणों के कारण विपरीत परिस्थितियों में भी वे कभी विचलित नहीं हुए ।

गुरु गोलवलकरजी की गिरफ्तारी

  • सदियों से यह परम्परा चली आयी है कि राष्ट्रहित में कार्य करनेवालों को अग्निपरीक्षा तो देनी ही पड़ती है । रा.स्व. संघ को भी इस कसौटी से गुजरना पड़ा । 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या हुई । स्वार्थी तत्त्वों को अपनी स्वार्थपूर्ति का एक अच्छा अवसर मिल गया । वे संघ का कुप्रचार और गांधीजी की हत्या का संबंध संघ से जोड़कर स्वयंसेवकों पर अत्याचार करने लगे ।
  • 1 फरवरी 1948 को वॉरंट जारी कर रात्रि 12 बजे गोलवलकरजी को गिरफ्तार किया गया । गिरफ्तारी के समय उन्होंने स्वयंसेवकों से कहा : ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है । हम लोग निष्कलंक बाहर आयेंगे । तब तक हम पर अनेकों अत्याचार होंगे पर हमें उन्हें धैर्य और शांति के साथ सहना है ।’’
  • अत्याचार का ताँता यहाँ खत्म नहीं हुआ । 4 फरवरी 1948 को सरकार ने संघ को अवैध घोषित कर दिया । लगभग 20 हजार स्वयंसेवकों को बिना किसी जाँच-पड़ताल के जेल में डाल दिया गया । कुछ दिनों बाद ही सरकार को गोलवलकरजी पर से गांधीजी की हत्या का अभियोग वापस लेना पड़ा ।
  • जब सरकार और संघ के बीच विचार-विनिमय के सभी प्रयास असफल हो गये तो गोलवलकरजी को पुनः नागपुर जेल में डाल दिया गया । धर्म और अधर्म के इस युद्ध में धर्म के पलड़े को हलका होते देख गोलवलकरजी से सहा न गया और उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन का राष्ट्रव्यापी आह्वान कर दिया । इस आह्वान पर देशप्रेमी स्वयंसेवकों तथा आम जनता ने संघ पर लगा प्रतिबंध हटाने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन किया । परंतु अत्याचारियों ने अत्याचार की सीमा पार कर सत्याग्रहियों की एकता और उत्साह को तोड़ने के लिए लगभग 80 हजार स्वयंसेवकों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दीं ।
  • जनता की माँग व सत्याग्रह में सत्य का पक्ष लेनेवालों की लाखों की संख्या को देखकर और लगाये गये इल्जामों का कोई ठोस सबूत नहीं मिलने के कारण सरकार ने संघ पर से प्रतिबंध हटा दिया और गोलवलकरजी को जेल से बाइज्जत रिहा कर दिया । दो वर्ष भ्रामक दुष्प्रचार के बावजूद संघ और श्री गोलवलकरजी जनता के शिरोभूषण बन गये । उनके लिए स्वागत सभाओं का आयोजन किया गया, जिनमें लाखों लोग आये ।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और गोलवलकरजी की सच्चाई जनमानस तक पहुँची । जिनके हृदय में परहित की भावना है और जो सत्य के रास्ते चलते हैं, उनके आगे कितनी भी दुःख-मुसीबतों की आँधियाँ आयें फिर भी वे उन्हें डिगा नहीं सकतीं । सत्यमेव जयते । जीत देर-सवेर सत्य की ही होती है ।
    – ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2014