आज हम जानेंगे : स्वप्न में मिली ईश्वर की आज्ञापालन का चमत्कार !!

एक आस्तिक व्यक्ति ने एक रात्रि को स्वप्न में देखा कि ईश्वर उसके सम्मुख खड़े होकर कह रहे हैं– “तुम्हारी मेरे प्रति दृढ निष्ठा है,अतः मैं तुम्हें एक कार्य सौंप रहा हूँ। सुबह तुम्हारे घर के
बाहर तुम्हें एक बड़ी-सी चट्टान नजर आयेगी। तुम्हें केवल उसे धकेलने का कार्य करना है।”

उस दृढ निष्ठावान व्यक्ति ने बिना ‘किंतु-परंतु किये उनके आदेश को मान लिया।

सुबह उसने देखा कि घर के बाहर वास्तव में एक बड़ी- सी चट्टान खड़ी है। वह अपना पूजा-पाठादि नित्यकर्म निपटाकर उस चट्टान को धकेलने में जुट गया। आते-जाते लोग उसे आश्चर्य से देख रहे थे। सुबह से शाम हो गयी पर चट्टान अपने स्थान से तिलभर भी नहीं हिलाई जा सकी।

दूसरे दिन पुनः वह उसी कार्य में लग गया। दिन पर दिन बीतने लगे पर चट्टान तो हिल ही नहीं रही थी । सभी लोग उसे समझाते थे कि ‘चट्टान नहीं खिसकेगी, तुम व्यर्थ प्रयास मत करो।’ पर वह मिली हुई सेवा में लगा ही रहा।

इस दौरान उसका कमजोर तन-मन काफी मजबूत हो गया। पर लोगों के ताने सुन-सुनकर उसके मन में कभी-कभी निराशा का विचार भी आने लगा कि ‘इतने प्रयत्न के बावजूद चट्टान तो रत्तीभर भी नहीं खिसकी है। उसे लगा कि ‘अब मुझे ईश्वर से अनुमति लेकर यह कार्य बंद कर देना चाहिए।’

ऐसा विचार कर वह रात को ईश्वर का चिंतन करते-करते सो गया। स्वप्न में उसे ईश्वर के दर्शन हुए। उसने पूछा कि ‘‘हे नाथ! चट्टान तो खिसक ही नहीं रही है लोग भी बहुत खरी-खोटी सुनाने लगे हैं। अब हे देव! इस कार्य को क्या मैं रोक दूँ ?

ईश्वर मुस्कराये और बोले : ‘‘मिली हुई सेवा करते-करते अब तुम मजबूत हो गये हो और जहाँ तक चट्टान को खिसकाने का कार्य है, वह तुम्हारा नहीं मेरा है। तुम्हें जो करने के लिए कहा गया वह तुमने ईमानदारी से किया। चट्टान तो मेरे संकल्पमात्र से ही खिसक जायेगी। मुझे देखना था कि तुम असफलता देखकर घुटने टेक देते हो या धैर्य एवं सहनशीलता पूर्वक अपने भाग्य में आयी सेवा को निभाते जाते हो। मेरे कहलाने वाले भक्त तो बहुत हैं पर तुम मेरे सच्चे भक्त हो क्योंकि तुमने सेवा नहीं छोड़ी।”

उस भक्त के मन में प्रवेश कर रही निराशा भाग गयी । वह अब पहले से अधिक उत्साह,तत्परता, निष्ठा से अपनी सेवा में लग गया। कुछ दिन बीते और उसने देखा कि काफी आगे खिसक गयी है।

पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘परिणाम की चिंता किये बिना उत्साह,धैर्य और कुशलतापूर्वक कर्म करनेवाला सफलता प्राप्त कर लेता है। अगर निष्फल भी हो जाये तो हताश-निराश नहीं होता बल्कि विफलता को खोजकर फेंक देता है और फिर तत्परता से उद्देश्यपूर्ति में लग जाता है।”