श्रीकृष्ण की अनेकों लीलाओं में माखन चोरी की लीला अपना कुछ विशिष्ट ही स्थान रखती है ।
उसी के कुछ प्रसंग :
कुछ ग्वाल-गोपियाँ ऐसे थे जो फरियाद करते थे कि श्रीकृष्ण हमारा दही-मक्खन चुरा लेते हैं । एक बार उन्होंने मिलकर एक योजना बनायी ।
दही-मक्खन की मटकी छीके में रखकर वे उसके नीचे सो गये कि ‘देखें, कृष्ण अब कैसे दही-मक्खन चुराते हैं ? अब देखो, हम उन्हें कैसा मजा चखाते हैं !’
श्रीकृष्ण ने देखा कि ‘ये चालाकी से मक्खन की मटकी छींके पर रखकर सो गये हैं ।’
वे एक नली ले आये और मटकी में छेद करके दूर से ही मक्खन चूस-चूसकर खाने लगे !
ग्वाल-गोपियों ने आँखें खोलीं तो श्रीकृष्ण ने उनके मुँह पर ही पिचकारी
मार दी ।
ग्वाल-गोपियों ने आँखें खोलीं तो श्रीकृष्ण ने उनके मुँह पर ही पिचकारी
मार दी ।
वे आँखों को साफ करते-करते चिल्लाये : ‘पकड़ो, पकड़ो।’ इतने में तो श्रीकृष्ण भाग गये ।