गुजरात में बारडोली क्षेत्र के एक गाँव में चौपाल पर बैठे कुछ लोग घबराये स्वर में कुछ बातें कर रहे थे। एक युवक ने उनके इस प्रकार आतंकित होने का कारण पूछा। लोगों ने बताया- “पूरा बारडोली क्षेत्र डाकुओं और पुलिस के अत्याचारों से पीड़ित है। शाम होते ही सभी घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं, गाँव में श्मशान जैसी खामोशी छा जाती है। केवल कुछ डाकू पचासों गाँवों के हजारों भोले-भाले लोगों को निर्दयतापूर्वक लूट रहे हैं।”

यह सुन उस युवक ने अपनी सूझबूझ, आत्मबल व साहस का परिचय देते हुए कहा- ‘बुराइयाँ भी अच्छाइयों के आधार पर ही खड़ी होकर अपना पोषण प्राप्त करती हैं । डाकू कहाँ से शक्ति प्राप्त करते हैं ? इनकी ताकत का स्रोत है संगठन, साहस, सावधानी और मनोबल। यदि इन गुणों को हम लोग भी विकसित करें तो आसानी से डाकुओं को पछाड़ा जा सकता है। सच्चाई और न्याय के लिए लड़नेवालों को परमात्मबल भी मददरूप होता है….. हम अपना-अपना कर्तव्य निभायें,
बुद्धि से काम लें, धैर्यपूर्वक डटे रहें और पूरी शक्ति से मुकाबला करें तो जीत हमारी ही होगी।”

उस युवक के अदम्य साहस ने मानो गाँववालों में एक नवीन चेतना, नवीन साहस व शक्ति का संचार कर दिया। उसके नेतृत्व में सब लोग संगठित हो गये । गाँव के १५० नौजवानों को अस्त्र-शस्त्रों से लैस कर बुद्धि व धैर्यपूर्वक एक व्यूह रचना की गई। जैसे ही डाकू आये,गाँववालों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और डटकर उनका मुकाबला किया…. लोगों का संगठन, हिम्मत व साहस देख डाकू भाग गये और दुबारा फिर कभी हिम्मत नहीं की।

लोगों में जान फूँकनेवाला वह निर्भीक कोई और नहीं,सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) थे जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी । इस प्रकार का अदम्य साहस,धैर्य व सूझबूझ उनके पूरे जीवनकाल में देखने को मिलती है। इसलिए उन्हें ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है।

दुर्जनों की दुर्जनता तभी तक हावी रहती है जब तक सज्जन अपने बल-बुद्धि पर विश्वास रखकर संगठित नहीं होते। जिस प्रकार संगठन के प्रताप से पूरे गाँव की डाकुओं से रक्षा हो गयी,उसी प्रकार देश, धर्म, संत और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेकर सज्जन लोग संगठित हो जायें और अपनी-अपनी छोटी-मोटी योग्यता के द्वारा सेवायोग का आश्रय लें तो इस लक्ष्य को हासिल कर सब ओर मंगल-ही-मंगल होगा।

पूज्य बापूजी कहते हैं : ”कुप्रचार के समय ही सुप्रचार भी होता है तो कुप्रचार का प्रभाव नहीं रहता । शिष्य अगर निष्क्रिय रहकर सोचते रह जायें कि ‘करेगा सो भरेगा….’ भगवान उन्हें ठीक करेंगे…. तो कृप्रचार करनेवालों को खुला मैदान मिल जाता है । अतः आपस में संगठित हो जाओ ! जुल्म करना पाप है, जुल्म सहना दुगुना पाप है।”