• बालक सुधरे तो जग सुधरा । बालक-बालिकाएँ घर, समाज व देश की धरोहर हैं । इसलिए बचपन से ही उनके जीवन पर विशेष ध्यान देना चाहिए । यदि बचपन से ही उनके रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल, शिष्टता और सदाचार पर सूक्ष्म दृष्टि से ध्यान दिया जाय तो उनका जीवन महान हो जायगा, इसमें कोई संशय नहीं है ।
  • लोग यह नहीं समझते कि आज के बालक कल के नागरिक हैं । बालक खराब अर्थात् समाज और देश का भविष्य खराब ।
  • बालकों को नन्हीं उम्र से ही उत्तम संस्कार देने चाहिए । उन्हें स्वच्छताप्रेमी बनाना चाहिए । ब्रह्ममुहूर्त में उठना, बड़ों की तथा दीन-दुःखियों की सेवा करना, भगवान का नामजप एवं ध्यान-प्रार्थना करना आदि उत्तम गुण बचपन से ही उनमें भरने चाहिए । ब्राह्ममुहूर्त में उठने से आयु, बुद्धि, बल एवं आरोग्यता बढ़ती है ।
  • उन्हें सिखाना चाहिए कि खाना चबा-चबाकर खायें । समझदारों का कहना है कि प्रत्येक ग्रास को 32 बार चबाकर ही खायें तो अति उत्तम है ।
  • उनके चरित्र-निर्माण पर विशेष ध्यान देना चाहिए । क्योंकि धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ-कुछ गया परंतु चरित्र गया तो सब कुछ गया । यह चरित्र ही है जिससे दो पैरवाला प्राणी मनुष्य कहलाता है । सिनेमा के कारण बालकों का चरित्र बिगड़ रहा है । यदि इसकी जगह पर उन्हे ऊँची शिक्षा मिले तो रामराज्य हो जाय ।
  • प्राचीन काल में बचपन से ही धार्मिक शिक्षाएँ दी जाती थीं । माता जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से ही उत्तम संस्कार दिये थे, इसीलिए तो आज भी वे सम्मानित किये जा रहे हैं । रानी मदालसा अपने बच्चों को त्याग और ब्रह्मज्ञान की लोरियाँ सुनाती थीं ।
  • जबकि आजकल की अधिकांश माताएँ तो बच्चों को चोर, डाकू और भूत की बातें सुनाकर डराती रहती है । वे बालकों को डाँटकर कहती हैं- ‘सो जा नहीं तो बाबा उठाकर ले जायेगा…. चुप हो जा नहीं तो पागल बुढ़िया को दे दूँगी ।’ बचपन से ही उनमें भय के गलत संस्कार भर देती हैं । ऐसे बच्चे बड़े होकर कायर और डरपोक नहीं तो और क्या होंगे ? माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के सामने कभी बुरे वचन न बोलें । उनसे कभी विवाद की बातें न करें ।
  • बच्चों को सुबह-शाम प्रार्थना-वंदना, जप-ध्यान आदि सिखाना चाहिए । उनके भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए । उन्हें शुद्ध, सात्त्विक और पौष्टिक आहार देना चाहिए तथा लाल-मिर्च, तेज मसालेदार भोजन एवं बाजारू हलकी चीजें नहीं खिलानी चाहिए । आजकल लोग बच्चों को चाट-पकौड़े खिलाकर उन्हें चटोरा बना देते हैं ।
  • उन्हें समझाना चाहिए कि सत्संग तारता है और कुसंग डुबाता है । समय के सदुपयोग, सत्शास्त्रों के अध्ययन और संयम-ब्रह्मचर्य की महिमा उन्हें समझानी चाहिए । मधुर भाषण, बड़ों का आदर, आज्ञापालन, परोपकार, सत्यभाषण एवं सदाचार आदि दैवी संपदावाले सदगुण उनमें प्रयत्नतः विकसित करने चाहिए ।
  • अध्यापकों को भी विद्यालय में उनका सूक्ष्म दृष्टि से ध्यान रखना चाहिए । अध्यापक के जीवन का भी विद्यार्थियों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है । शिक्षक ऐसा न समझें कि पुस्तकों में लिखी पेटपालू शिक्षा देकर हमने अपना कर्त्तव्य पूरा कर लिया । लौकिक विद्या के साथ-साथ उन्हें चरित्र-निर्माण की, आदर्श मानव बनने की शिक्षा भी दीजिये ।
  • आपकी इस सेवा से यदि भारत का भविष्य उज्जवल बनता है तो आपके द्वारा सुसंस्कारी बालक बनाने की राष्ट्रसेवा, मानवसेवा हो जायेगी ।
  • विद्यालय में अच्छे बच्चों के साथ कुछ उद्दण्ड एवं उच्छ्रंखल बच्चे भी आते हैं । उन पर यदि अंकुश नहीं लगाया गया तो अच्छे बच्चे भी उनके कुसंग में आकर बिगड़ जाते है । याद रखिये ‘एक सड़ा हुआ आम पूरे टोकरे के आमों को खराब कर देता है ।’ इसलिए ऐसे बच्चों को सुसंस्कारवान बनाना चाहिए । बालक तो गीली मिट्टी जैसे होते हैं । शिक्षक एवं माता पिता उन्हें जैसा बनाना चाहें बना सकते हैं ।
  • बालक इंजिन के समान है तथा माता पिता एवं गुरूजन ड्राइवर जैसे हैं । अतः उन्हें ध्यान रखना चाहे कि बालक कैसा संग करता है ? प्रातः जल्दी उठता है कि देर से ? कहीं वह समय व्यर्थ तो नहीं गँवाता ? उन्हें बच्चों की शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक उन्नति का भी ध्यान रखना चाहिए । कई माता पिता अपने बच्चों को उल्टी सीधी कहानियो की पुस्तकें देते हैं, जिनसे बच्चों के मन, बुद्धि चंचल हो जाते हैं । उनका यह शौक उन्हें आगे चलकर गंदे उपन्यास एवं फिल्मी पत्रिकाएँ पढ़ने का आदी बना देता है और उनका चरित्र गिरा देता है ।
  • इसलिए बच्चों को सदैव सत्संग की पुस्तकें गीता, भागवत, रामायण आदि ग्रन्थ पढ़ने के लिए उत्साहित करना चाहिए ।
  • उनके जीवन में दैवी गुणों का उदय होगा । उन्हें ध्रुव, प्रह्लाद, मीराबाई आदि की इस प्रकार कथा-कहानियाँ सुनानी चाहिए, जिनसे वे भी अपने जीवन को महान बनाकर सदा के लिए अमर हो जायें ।
  • अंत में बालकों से मुझे यही कहना है कि माता, पिता एवं गुरूजनों की सेवा करते रहें, यही उत्तम धर्म है । गरीब एवं दीन दुःखियों को सँभालते रहें तथा ईश्वर को सदैव याद रखें जिसने हम सभी को बनाया है, भले कर्म करने की योग्यताएँ दी हैं । उसे स्मरण करने से सच्ची समृद्धि की प्राप्ति होगी ।