❀ गुरु-सन्देश –
★ आत्मनिर्भरता (Self Reliance) का अभ्यास बनाये रखना चाहिए । इससे मनोबल, भावबल, बुद्धिबल सुविकसित होते हैं । जरा-जरा से काम में यदि दूसरों का मुँह ताकने की आदत पड़ जायेगी तो मनुष्य आलसी व पराधीन बन जायेगा और ऐसा मनुष्य जीवन में क्या प्रगति कर सकता है !
➢ पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
➠ कोलकाता के विद्यालय में पढ़ने आया एक नौजवान विद्यार्थी रेलवे स्टेशन पर उतरा और ‘कुली…कुली…’ चिल्लाने लगा। हालाँकि उसके पास उतना ही सामान था, जितना वह आसानी से उठा सकता था ।
➠ एक सीधा-सादा व्यक्ति उसके पास आया और बोला : “कहाँ चलना है ?”
➠ लड़के ने पता बताया । गंतव्य स्थान पर पहुँचने पर कुली ने सामान उतारा और चल दिया।
➠ लड़का बोला : “अरे महाशय ! अपना पारिश्रमिक तो लेते जाइये।”
➠ कुली ने मुस्करा कर कहा : “तुम अपना काम स्वयं करना सीख जाओ, यही मेरे लिए सबसे बड़ा पारिश्रमिक होगा ।” और वह कुली चला गया ।
➠ दूसरे दिन विद्यार्थी विद्यालय पहुँचा तो प्रधानाचार्य की कुर्सी पर कल के कुली को बैठा देख अवाक् रह गया और उसका सिर शर्म से झुक गया । लड़का उनके चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा ।
➠ प्रधानाचार्य ने उसे उठाया और स्नेह से उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले : “आज से तुम आत्मनिर्भरता (Self Reliance) का पाठ याद कर लो । आत्मनिर्भर व्यक्ति ही घर-परिवार, देश-समाज में सफलता व सम्मान पाने का अधिकारी होता है ।”
➠ वे प्रधानाचार्य थे सुप्रसिद्ध समाजसेवी, आत्मनिर्भरता, सेवा, परदुःखकातरता जैसे गुणरत्नों के धनी ईश्वरचंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) ! उनकी स्नेहभरी सीख से उस विद्यार्थी में आत्मनिर्भरता का सद्गुण आ गया ।
● शिक्षा – प्रात: करदर्शन से मनुष्य के हृदय में आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन की भावना का उदय होता है । जीवन के प्रत्येक कार्य में वह दूसरों की तरफ नहीं देखता, अन्य लोगों के भरोसे नहीं रहता वरन् अपने अहंकार-रहित पुरुषार्थ से लक्ष्मी, विद्या और भगवद प्राप्ति सहज-सुलभ कर लेता है ।”
➢ लोक कल्याण सेतु, अप्रैल 2015
● अभिभावकों के लिए – बच्चों को नियमित प्रात: करदर्शन करवाते हुए श्लोक भी बुलवाएं ।
कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती ।
कर मूले तू गोविंद:, प्रभाते करदर्शनम् ।।