Anandamayi Ma Teachings for kids
बच्चों को बचपन से ही धर्म-शिक्षा देनी चाहिए…।
तुम लोग बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के लिए कितना प्रयत्न करते हो ताकि बड़े होकर वे उपार्जनशील हो सकें लेकिन उन्हें धार्मिक शिक्षा नहीं देते।
अक्सर बच्चों के माता-पिता मुझसे यह शिकायत करते हैं कि उनके बच्चों में धर्मभाव नहीं है। वे लोग संध्या, (आह्निक) आदि पारमार्थिक कार्य नहीं करते। इन सभी विषयों पर अविश्वास करते हैं। यहाँ तक कि ब्राह्मण संतान होकर गले में जनेऊ नहीं रखते।
ये सब बातें सुनकर मैं उनसे कहती हूँ कि इस दिशा में बच्चों के माँ-बाप ही अधिक दोषी हैं क्योंकि वे लोग अपने बच्चों को अर्थकारी विद्या की शिक्षा दिलवाते हैं, धार्मिक शिक्षा नहीं देते । धार्मिक शिक्षा के अभाव में अगर लड़के नास्तिक या उच्छृंखल होते हैं तो माँ-बाप को शिकायत करने का अधिकार नहीं है।
बच्चों को जागतिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा देनी चाहिए। बचपन से ही धार्मिक शिक्षा देने पर उसका परिणाम अच्छा होता है।
बालक-बालिकाओं को बचपन से ही चरित्र गठन शिक्षा-प्रणाली की अधिक आवश्यकता है।
प्राचीन काल में ब्रह्मचर्य नाम का जो प्रथम आश्रम था, उसका यदि पुनर्गठन किया जाय तो हिन्दू धर्म पुनः जागृत हो जायेगा।
तुम लोग जो ज्ञान-उपार्जन कर रहे हो वह जागतिक ज्ञान है। उसे वास्तविक ज्ञान नहीं कहा जा सकता क्योंकि उस ज्ञान से ‘मैं कौन हूँ ? कहाँ से आया ? कहाँ जाऊँगा?’ इन सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते।*
जागतिक शिक्षा में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के कारण ‘यह काम नहीं करूँगा, वह काम नहीं करूंगा….’ – यह सब मन में नहीं लाना चाहिए… प्रत्येक काम करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना चाहिए।
शास्त्र (ज्ञान) सभी के भीतर है लिखाई-पढ़ाई करने से उसका प्रकाश होता है कि वह सभी के भीतर एक वही….. वह पढ़ना होने से ही सब हो गया । जिसको जानने से और जानने का कुछ भी बाकी नहीं रहता, उसी एक विद्या (आत्मविद्या) से जगत की सारी विद्याओं की प्राप्ति हो जाती है।
~लोक कल्याण सेतु/अप्रैल २०१८