…..~पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी
एक बार लक्ष्मीजी पृथ्वी पर आयीं। लोग बैठे थे। आलसी थे। कह दिया, “माँ की जय हो।” लक्ष्मी जी ने उन सबके घर सुवर्ण से भर दिया। यह देखकर पृथ्वी रोती रोती लक्ष्मीजी के पास आयी और बोलीः “आप मेरे बच्चों के साथ अन्याय कर रही हो।”
“पगली कहीं की ! मुझे तू रोकने-टोकने आयी है ? मैं तेरे बच्चों से अन्याय कर रही हूँ ? वे ‘माँ… माँ….’ करते हैं और मैं एकदम उनका घर सोने से भर देती हूँ ? उन्हें धन से सम्पन्न कर देती हूँ।”
“भगवती ! वे थोड़ा-सा माँगे और आप धन के ढेर लगा दोगी तो उनमें छुपी हुई जो पुरुषार्थ की शक्ति है वह विकसित नहीं होगी। वे पराधीन हो जायेंगे, भिखमंगे हो जायेंगे, स्वामी नहीं बन पायेंगे। पुरुषार्थ करने की योग्यता नष्ट हो जायेगी। मैया ! आप तो नारायण के चरणों में शोभा देती हैं जो आत्मारामी हैं। ये लोग तो विषयारामी हैं। वे जो माँगें वह उन्हें देती जाओगी तो मेरे उन बच्चों का सत्यानाश हो जायेगा।”
लक्ष्मीजी ने सुनी अनसुनी कर दिया। कुछ ही दिनों में घर घर में सोने की थालियाँ, सोने के कटोरे, सोने के घड़े आदि सब सोना सोना हो गया। लोगों ने सोचा कि हमारे घर में इतना सोना है, अब खेत में जाने की जरूरत क्या है ? हल जोतने की जरूरत क्या है ? इतना सारा सोना है तो अब मजदूरी कौन करे?
बारिश आयी लोगों ने हल न जोते। दाने न बोये। घर में जो अनाज पड़ा था वह खाते रहे, आलसी होकर बैठे रहे। खेत सब जंगल हो गये। धान्य आदि कुछ पका नहीं। बारिश गयी तो हाय हाय ! लोग आक्रन्द करने लगे। अनाज के बिना छाती पर सोना रखते-रखते मर गये।
पृथ्वी रोती-रोती ब्रह्माजी के पास पहुँची और कहाः “ब्रह्मन ! लक्ष्मीजी को पृथ्वी पर आने का Stay Order (स्थगन आदेश) कर दीजिये, अन्यथा मेरा सब चौपट हो जायेगा।”
ब्रह्माजी ने समाधि लगाकर सब हाल देखा। हाँ, उचित है। मूर्खों को बिना परिश्रम कुछ मिलना नहीं चाहिए। हर चीज का दाम चुकाने से उसकी कद्र होती है, उसका स्वाद भी आता है। बिना दाम चुकाये कोई चीज मिल जाती है तो हम में छिपी हुई शक्ति विकसित नहीं हो पाती और हम पराश्रित हो जाते हैं।
~अलख की ओर साहित्य से..
Short Pauranik Katha in Hindi