छुट्टियों का कैसे करें सदुपयोग
कोरोना वायरस की महामारी के चलते अभी पूरे देश में लॉक डाउन होने से बच्चों-बड़ों सभी को घर पर ही रहना पड़ रहा है। तो इस समय को सोने में, बहस अथवा व्यर्थ चर्चा में, मोबाईल में लम्बी बातें करके, गेम खेलकर अथवा टी वी, फिल्में देखकर बरबाद न करें बल्कि इस आपातकालीन समय का हम अधिक-से अधिक सदुपयोग कर के अपनी आध्यात्मिक उन्नति करें इसके लिए कुछ प्रकल्प नीचे दिये जा रहे हैं:
(१) अनुष्ठान : अपने घर पर ही बैठकर विद्यार्थी सारस्वत्य मंत्र का तथा बड़े गुरुमंत्र अथवा भगवन्नाम या श्री आशारामायण का अनुष्ठान कर सकते हैं। ॐकार गुंजन नियमित करके एकाग्रता व आध्यात्मिकता को बढ़ा सकते हैं।
(२) सत्संग श्रवण व सत्संग-चर्चा : प्रतिदिन पूज्य बापूजी के सत्संग वचनामृत को श्रवण करें तथा सत्संग के मुख्य बिंदु अपनी नोटबुक या डायरी में लिखें। उन बिन्दुओं को दिन में ३-४ बार दोहरायें और आपस में सत्संग की बातों की चर्चा करें, इससे सत्संग गहरा उतरेगा और बोरियत व संकल्प – विकल्प दूर
हो जायेंगे।
(३) शास्त्राध्ययन, प्रश्नोत्तरी व अंताक्षरी : दिव्य प्रेरणा प्रकाश, जीवन विकास, जीवन रसायन, नारायण स्तुति, ईश्वर की ओर श्रीमद भगवद्गीता, श्रीयोगवसिष्ठ महारामायण, ऋषि प्रसाद, लोक कल्याण सेतु आदि सत्साहित्यों का नित्य पठन करें तथा संतों के जीवन-चरित्र व गुरुकुल दर्पण का अध्ययन करें,पढ़े गये पाठ पर प्रश्नोत्तरी अथवा चर्चा करें। श्री आशारामायण या ब्रह्मरामायण की पंक्तियों पर अंताक्षरी भी खेल सकते हैं।
(४) नाटिका दर्शन : पूज्य बापूजी के जीवन पर आधारित चेतना के स्वर’, ऋषि दर्शन, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, भक्त मीराबाई, संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम आदि महापुरुषों के जीवन चरित्र पर आधारित आदर्श नाटिकायें देख सकते हैं।
(५) सारांश संग्रह : ऋषि प्रसाद तथा लोक कल्याण सेतु में छपे लेखों से विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सूत्र, जीवनोपयोगी कुंजियाँ, स्वास्थ्य रक्षा के अनुभूत प्रयोग आदि के फोटो खींच कर एक जगह संग्रह कर सकते हैं।
(६) योगासन, त्राटक, प्राणायाम, मौन आदि का अभ्यास बढ़ायें। इन छुट्टियों के समय में रोज कम-से-कम ४-५ घंटे मौन रखने का प्रयास करें और मौन के समय जप, सत्संग का लाभ लें, टी.वी. या वीडियो गेम में मौन का दुरुपयोग नहीं करें।
(७) विद्यार्थी अपना कुछ समय लेखन कला तथा वक्तव्य शैली को सुंदर बनाने तथा घर के कार्य सीखने में भी लगायें।
शास्त्रों में आता है:
अनित्यानि शरीराणि वैभवो नैव शाश्वतः। नित्यं सन्निहितो मृत्यु कर्तव्यो धर्मसंग्रहः।।
शरीर अनित्य है, वैभव शाश्वत नहीं है। शरीर हर रोज मृत्यु नजदीक जा रहा है। अतः धर्म का संग्रह कर लेना चाहिए।