▪ सन् 1940 के आस-पास बीकानेर की तरफ संत देवा महाराज हो गये । उस समय तो सड़कें कच्ची थीं । केवल राजे-महाराजे ही परदेश से गाड़ियां मँगवा सकते थे । भक्तों ने मिलकर देवा महाराज के लिए एक गाड़ी मँगवा दी । महाराज गाड़ी चलाने के शौकीन थे, इसलिए खुद ही गाड़ी चलाते थे ।

▪ गाड़ी एक तो बीकानेर नरेश के पास थी और दूसरी देवा महाराज के पास । देवा महाराज को कभी सड़क पर राजा की गाड़ी मिल जाती तो वे उसे ओवरटेक करके पीछ़े कर देते । इससे राजा के अहं को चोट लगती ।

राजा ने चालक से पूछ़ा : ‘‘ये हैं कौन ?”

‘‘ये देवा महाराज हैं । भक्तों ने इन्हें यह गाड़ी दिलवायी है । ये खुद ही गाड़ी चलाते हैं ।”

राजा : ‘‘ये क्या समझते हैं ? जब देखो, ओवरटेक… ओवरटेक…?”

▪ राजा के अहं को चोट लगी और उसने महाराज की गाड़ी जब्त कर ली और मंत्रियों से कहा : ‘‘महाराज को पकड़कर ले आओ । भक्तों को पता चला कि राजा महाराज को पकड़ना चाहते हैं ।

वे बोलने लगे : ‘लगता है राजा की बुद्धि बिगड़ गयी है। किसी का सत्यानाश होने वाला होता है, तब वह संत को छेड़ता है ।’

▪ राजा को समझाने के लिए लोगों ने बड़ी मेहनत की, किंतु राजा न माना । राजा ने महाराज को पकड़ने के लिए पुलिस भेजी । जब पुलिस आने वाली थी, तब भक्त भी वहाँ पहुँच गये और भगवन्नाम का कीर्तन करने लगे ।

भगवन्नाम-कीर्तन से तुमुल ध्वनि पैदा होती है । वहाँ भी एक प्रकार की शक्ति पैदा हो गयी । अब पुलिस की हिम्मत कैसे होती महाराज को पकड़ने की ? अधिकारी आये तो किंतु किसी की हिम्मत न हुई कि उन्हें पकड़ ले । उन्होंने राजा के पास जाकर कहा : ‘‘राजा साहब ! यहाँ आपका वश नहीं चलेगा, चाहें जो कर लें । राजा साहब और उसकी पुलिस महाराज को पकड़ने में नाकामयाब रही।

देवा महाराज एकांत साधना के लिए ऋषिकेश चले गये । इधर राजा पर कुदरत का ऐसा कोप हुआ कि वह बीमार पड़ गया और राज्य में अकाल पड़ा । बारिश के दिनों में आस-पास के इलाकों में तो बारिश होती किंतु राजा के इलाके में नहीं होती थी। जैसे किसी देश को आतंकवादी घोषित कर देते हैं तो दूसरे देश उसकी मदद नहीं करते, वैसे ही संत को सताने वालों को प्रकृति मदद नहीं करती । राजा को भक्तों कि बद्दुआ तो मिली ही, साथ में बीमारी में भी किसी की मदद न मिली और चिंता-तनाव भी इतना हुआ कि केवल 2 साल में वह तबाह होकर मर गया ।

▪ जब उनके कुल का दूसरा व्यक्ति राजा बना तब उसने हाथाजोड़ी करके भक्तों को भेजा कि देवा महाराज को मनाकर ले आयें । जब देवा महाराज आये तब राजवी ठाठ-बाट से उनका स्वागत-सत्कार और आदर किया गया ।

बताओ, राज राजा का है, कि महाराज का ? राजा का राज तो केवल यहाँ होता है, महाराज का राज तो यहाँ भी होता है और वहाँ (परलोक में) भी !! नये राजा ने महाराज से प्रार्थना की : ‘‘महाराज ! बरसात हो ऐसी कृपा हो जाए ।”
‘‘ठीक है । भगवान को प्रार्थना करो तो हो जायेगी ।”

▪ भक्त इकट्ठे हुए, कीर्तन किया तो दो-तीन दिन में ही बीकानेर में इतनी बारिश… इतनी बारिश हुई कि मानो गंगा-यमुना-सरस्वती तीनों एक साथ जलधाराओं का रूप लेकर बरस रहीं हों ! अब देवा महाराज को ज्यादा लोग मानने लगे और भीड़-भडा़का बढ़ गया ।

महाराज ने भक्तों से कहा : ‘‘अब तो हम जायेंगे ।”
‘‘महाराज ! कहाँ जाओगे ?”
‘‘कहीं भी जायेंगे ?‘‘
‘‘फिर कब आओगे ? कब मिलोगे ?”
‘‘अमुक तिथि को पूरे मिल जायेंगे ।”

▪ भक्त समझे कि ‘उस तिथि को हमें मिलेंगे किंतु वे तो बतायी गयी तिथि को पूरे मिल गये अर्थात् ईश्वर के साथ एक हो गये । ऐसे महापुरुष कब, कहाँ से, कैसे चल दें कोई पता थोड़े ही होता है । इसीलिए गोरखनाथ जी ने कहा है :

*  “गोरख जागता नर सेविये…”

– सीख
“संत सताये तीनों जाये तेज, बल और वंश ।
ऐड़ा ऐड़ा कई गयो रावण कौरव और कंस ।।”

– पूज्य बापूजी

~ बाल संस्कार पाठ्यक्रम से