नाथ सम्प्रदाय में श्री आमनाथजी एक सिद्ध योगी हो गये । एक बार उन्होंने शिष्यों सहित सिरमौर राज्य (वर्तमान सिरमौर जिला) के नाहन शहर के बाहर डेरा डाला । बाबाजी ने अपने शिष्य अँतवारनाथ से कहा : “बेटे ! शहर से भिक्षा ले आओ । हाँ, राजभंडार से आम का अचार जरूर लाना ।”
भिक्षा एकत्र करके शिष्य राजभंडारी से अचार लेने गया । उन दिनों नाहन में आम नहीं होते थे । राजा-रईस लोग बाहर से मँगवाते थे । फिर भी राजा की आज्ञा से भंडारी ने उन्हें अचार दे दिया । यह क्रम तीन दिन तक चला किंतु चौथे दिन अचार माँगने पर राजा ने गुस्से कहा: “क्या रोज-रोज अचार माँगने चला आता है ! तेरे गुरु का नाम क्या है ?”
“मेरे गुरुदेव बाबा आमनाथजी हैं ।”
राजा जोर से हँसा और बोला: “गुरुजी ‘आमनाथ’ हैं और चेलाजी आम के अचार के लिए तरसते फिरते हैं ! अगर अचार खाने का इतना ही शौक है तो तुम्हारे गुरु आम के पेड़ क्यों नहीं लगा लेते ?”
शिष्य ने खाली हाथ लौटकर गुरुजी को सारी घटना कह सुनायी । आमनाथजी पर उसका कोई असर नहीं हुआ क्योंकि वे मान-अपमान, सुख दुःख से पार थे । वे अपनी मौज में रहे । परंतु संत का अनादर करने पर प्रकृति सजा देती है और राजा ने तीन दिन तक संतसेवा की थी तो उसका पतन संत कैसे होने देंगे ! अतः उन्होंने उसी शाम संध्या-वंदन के बाद पास के मैदान में संकल्प करके जल छिड़क दिया । जहाँ भी जल की बूँदें पड़ीं, वहाँ फले-फूले आम के पेड़ तैयार हो गये ।
सुबह राजा घूमने निकला तो वीरान मैदान की जगह सुंदर-सुहावने फलों से लदा आम्र निकुंज देखकर आश्चर्य में पड़ गया ! योगेश्वर आमनाथ का यह अलौकिक सामर्थ्य देखकर उसे उनके प्रति किये अपने अपराध की याद आयी और पश्चात्ताप से उसका हृदय जलने लगा । वह दौड़ा-दौड़ा संत-चरणों में पहुँचा और अपने अपराध के लिए क्षमा याचना करने लगा ।
आमनाथजी ने राजा को क्षमा कर दिया और उन पेड़ों को कभी ठेके पर न देने की आज्ञा दी । परंतु राज्य की बागडोर दूसरे राजा के हाथ में आते ही उसने आम के पेड़ ठेके पर देना शुरू किया । ब्रह्मज्ञानी संत-महापुरुषों के वचन अकाट्य होते हैं । उनकी अवहेलना का दुष्परिणाम तो भुगतना ही पड़ता है और हुआ भी ऐसा ही, उन आम के पेड़ों में फल लगना हमेशा के लिए बंद हो गया ।
– लोक कल्याण सेतु, मई 2013