➠ जितना जितना आध्यात्मिक बल बढ़ता है, उतनी-उतनी भौतिक वस्तुएँ खिंचकर आती हैं और प्रकृति अनुकूल हो जाती है। -पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी
➠ एक होती है ‘शिक्षा’ (Shiksha), दूसरी होती है ‘दीक्षा’ (Diksha)। स्कूल, कॉलेजों में मिलने वाली शिक्षा ऐहिक वस्तुओं का ज्ञान देती है। शरीर का पालन पोषण करने के लिए इस शिक्षा की आवश्यकता है।
➠ यह शिक्षा अगर दीक्षा से रहित होती है तो विनाशक भी हो सकती है। शिक्षित आदमी समाज को जितनी हानि पहुँचा सकता है, उतनी अशिक्षित आदमी नहीं पहुँचा सकता। साथ-ही-साथ, शिक्षित आदमी अगर सेवा करना चाहे तो अशिक्षित आदमी की अपेक्षा ज्यादा कर सकता है।
➠ देख लो रावण का जीवन, कंस का जीवन। उनके जीवन में शिक्षा तो है लेकिन आत्मज्ञानी गुरुओं की दीक्षा नहीं है। अब देखो, राम जी का जीवन, श्रीकृष्ण का जीवन। शिक्षा से पहले उन्हें दीक्षा मिली है। ब्रह्मवेत्ता सदगुरु से दीक्षित होने के बाद उनकी शिक्षा का प्रारम्भ हुआ है। जनक के जीवन में शिक्षा और दीक्षा दोनों है तो सुन्दर राज्य किया है।
~तेजस्वी बनो