Power of Brahmacharya [Sanyam Shakti] A Short Story of Anandamayi Ma in Hindi: संयम में अद्भुत सामर्थ्य है । जिसके जीवन में संयम है, जिसके जीवन में ईश्वरोपासना है…. उसका जीवन सहज ही में महान हो जाता है । आनंदमयी माँ का जब विवाह हुआ तब उनका व्यक्तित्व अत्यंत आभा सम्पन्न था । शादी के बाद उनके पति उन्हें संसार-व्यवहार में ले जाने का प्रयास करते रहते थे किंतु आनंदमयी माँ ‘संयम’ और ‘सत्संग’ की महिमा सुनाकर, पति की थोड़ी सेवा करके, विकारों से उनका मन हटा देतीं थीं । इस प्रकार कई दिन बीते, हफ्ते बीते, कई महीने बीत गये लेकिन आनंदमयी माँ ने अपने पति को विकारी जीवन में गिरने नहीं दिया ।
आखिरकार कई महीनों के पश्चात् एक दिन उनके पति ने कहा : ‘‘तुमने मुझसे शादी की है फिर भी क्यों मुझे इतना दूर-दूर रखती हो ?’’
तब आनंदमयी माँ ने जवाब दिया : ‘‘शादी तो जरूर की है लेकिन शादी का वास्तविक मतलब तो इस प्रकार है : शाद अर्थात् खुशी । वास्तविक खुशी प्राप्त करने के लिए पति-पत्नी एक-दूसरे के सहायक बनें न कि शोषक । काम-विकार में गिरना यह कोई शादी का फल नहीं ।’’
इस प्रकार अनेक युक्तियों से और अत्यंत विनम्रता से उन्होंने अपने पति को समझा दिया ।
आनंदमयी माँ संसार के कीचड़ में न गिरते हुए भी अपने पति की बहुत अच्छी तरह से सेवा करतीं थीं । पति नौकरी करके घर आते तो गर्म-गर्म भोजन बनाकर खिलाती थीं ।
आनंदमयी माँ घर में भी ध्यानाभ्यास किया करती थीं । कभी-कभी स्टोव पर दाल चढ़ाकर, छत पर खुले आकाश में चन्द्रमा की ओर त्राटक करते-करते ध्यानस्थ हो जातीं । इतनी ध्यानमग्न हो जातीं कि स्टोव पर रखी हुई दाल कोयला हो जाती । घर के लोग डाँटते तो चुपचाप अपनी भूल स्वीकार कर लेतीं लेकिन अंदर से तो समझती कि : ‘मैं कोई गलत मार्ग पर तो नहीं जा रही हूँ…’ इस प्रकार उनके ध्यान-भजन का क्रम चालू ही रहा । घर में रहते हुए ही उनके पास एकाग्रता का कुछ सामर्थ्य आ गया ।
एक रात्रि को वे उठीं और अपने पति को भी उठाया । फिर स्वयं महाकाली का चिंतन करके अपने पति को आदेश दिया : ‘‘महाकाली की पूजा करो ।’’ उनके पति ने इनका पूजन कर दिया । आनंदमयी माँ में उन्हें महाकाली के दर्शन होने लगे । उन्होंने आनंदमयी माँ को प्रणाम किया ।
तब आनंदमयी माँ बोलीं : ‘‘अब महाकाली को तो माँ की नजर से ही देखना है न ?’’
पति : ‘‘यह क्या हो गया ?’’
आनंदमयी माँ : ‘‘तुम्हारा कल्याण हो गया ।’’
कहते हैं कि उन्होंने अपने पति को दीक्षा दे दी और साधु बनाकर उत्तरकाशी के आश्रम में भेज दिया ।
कैसी दिव्य नारी रही होंगी माँ आनंदमयी ! उन्होंने अपने पति को भी परमात्मा के रंग में रंग दिया । जो संसार की माँग करता था, उसे भगवान की माँग का अधिकारी बना दिया । इस भारत भूमि में ऐसी भी अनेकों सन्नारियाँ हो गयीं ! कुछ वर्ष पूर्व ही आनंदमयी माँ ने अपना शरीर त्यागा है । अभी हरिद्वार में उनकी समाधि बनी है ।
ऐसी तो अनेकों बंगाली लड़कियाँ थीं, जिन्होंने शादी की, पुत्रों को जन्म दिया, पढ़ाया-लिखाया और मर गईं । शादी करके संसार-व्यवहार चलाओ उसकी ना नहीं है लेकिन पति को विकारों में गिराना या पत्नी के जीवन को विकारों में खत्म करना यह एक-दूसरे के मित्र के रूप में एक-दूसरे के शत्रु का कार्य है । संयम से संतति को जन्म दिया यह अलग बात है किंतु विषय-विकारों में फँस मरने के लिए थोड़े ही शादी की जाती है ।
बुद्धिमान नारी वही है जो अपने पति को ब्रह्मचर्य-पालन में मदद करे और बुद्धिमान पति वही है जो विषय-विकारों से अपनी पत्नी का मन हटाकर निर्विकारी नारायण के ध्यान में लगाये । इस रूप में पति-पत्नी दोनों सही अर्थों में एक-दूसरे के पोषक होते हैं, सहयोगी होते हैं । फिर उनके घर में जो बालक जन्म लेते हैं वे भी ध्रुव जैसे, गौरांग जैसे, रमण महर्षि जैसे, रामकृष्ण जैसे, विवेकानंद जैसे बन सकते हैं ।
– पूज्यपाद संत श्री आशारामजी बापू
(ऋषि प्रसाद : जुलाई 1998)