“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता…”
श्री रामकृष्ण परमहंस की भक्त मंडली में रानी रासमणि का नाम बड़ी प्रमुखता से लिया जाता है ।
एक बार की बात है, दुर्गाष्टमी का पर्व निकट था । रानी रासमणि के पास लोगों ने निवेदन किया कि “इस बार माँ दुर्गा को चाँदी के रथ में सजाकर यात्रा निकाली जाए ।”
रानी रासमणि को यह विचार पसंद आया और उन्होंने सेवकों को रथ सजाने का निर्देश दे दिया । रथ तैयार होकर आते ही लोगों में मानो हर्षोल्लास की बाढ़ आ गई । ढोल-नगाड़े, झांझ-मृदंग आदि वाद्यों से पूरा मोहल्ला गूँज उठा ।
रानी की हवेली के सामने एक अंग्रेज रहता था। उसे यह शोर अच्छा नहीं लगा। मन-ही-मन वह जल-भुन गया । उसने कमिश्नर से शिकायत करके पुलिस को बाजे बंद कराने का हुक्म दिलवा दिया किंतु रानी रासमणि ने पुलिस वालों की एक न सुनी ।
वे बोलीं : “यह तो हमारे उत्सव का दिन है। हम तुम्हारी तरह केवल मोमबत्ती जलाकर उत्सव नहीं मानते । हम तो ढोल-नगाड़े, मृदंग-मंजीरे बजाकर सारी दुनिया को चैतन्यमय, भक्तिभावमय करते हैं। धर्म के मामले में ऐसी दखलअंदाजी हम जरा भी बर्दाश्त नहीं करेंगे । “
रानी रासमणि ने वाद्य यंत्रों की संख्या दूनी कर देने का आदेश दिया । सेवकों ने तदनुसार ही किया । चाँदी के भव्य रथ में माँ दुर्गा की श्रृंगार-सुशोभित मूर्ति बिठाकर बड़े उत्साह से शोभायात्रा प्रारंभ हुई । विविध वाद्यों की गगनभेदी ध्वनि से इलाका गूँज उठा ।
वह गोरा कान में उँगली डाले अपने घर की खिड़की से झाँक रहा था और कुछ-का-कुछ बके जा रहा था ।
अपनी हँसी होते देखकर उसके अभिमान को करारी ठेस लगी ।
अपने ४-५ साथियों को लेकर वह गंगाघाट गया और वहाँ मंदिर के कबूतरों को बंदूक से मारने लगा । वहाँ से गुजर रहे लोगों को भी वह परेशान कर रहा था। रानी तक यह खबर पहुँची तो वे बोलीं : “लगता है इस उद्दंड को कड़ा सबक सिखाना पड़ेगा ।”
दूसरे दिन भी वह अंग्रेज हाथ में बंदूक लेकर बड़े रुआब से रानी की हवेली के सामने से निकला। कुछ कदम आगे गया तो देखा, रास्ता बंद ! रास्ते पर तो ऊँची दीवार खड़ी हुई है । उसका गुस्सा और भड़का : “हमारे ही राज में हमसे ही बैर ! इस रानी की शान ठिकाने लानी पड़ेगी !”
अंग्रेज ने कोर्ट में फरियाद कर दी । रानी कोर्ट में हाजिर हुई और भरी अदालत में अंग्रेज की भर्त्सना करते हुए कड़क शब्दों में कहा “यह रास्ता हमने अपने खर्चे से बनवाया है । इस पर हमारा पूरा-पूरा अधिकार है । वहाँ दीवार खड़ी करनी या नहीं यह हमारा विषय है । यदि मेरी बात आपको गैरवाजिब लगती हो तो ये कागजात आप देख सकते हैं ।”
हाथ कंगन को आरसी क्या ? न्यायाधीश क्या कहता ? रानी की जीत हुई और अंग्रेज की अच्छी फजीहत हो गयी ।
पूरे कोलकाता में रानी रासमणि की प्रशंसा होने लगी । उस जमाने में….. जबकि लोग अंग्रेजों के नाम से डरे-सहमे रहते थे, एक विधवा नारी का अंग्रेजों से टक्कर लेना बड़े साहस की बात थी ।
नारी अबला नहीं है, आदिशक्ति का परम सामर्थ्य उसमें छुपा हुआ है । उसमें पालिनी शक्ति है तो विध्वंसिनी शक्ति भी है । भक्तों के लिए जो वात्सल्यमयी है वह दुष्टों के लिए काली-कराली भी है । माँ अनसूइया, सती सावित्री, माँ सीता, गार्गी जैसी सन्नारियाँ इस धरा पर हो चुकी हैं, जिन पर भारत को आज भी गर्व है।
इसीलिए तो ‘दुर्गा सप्तशती’ में आता है :
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
~ लोक कल्याण सेतु / नव.-दिस. 2008