Why Vedic Gurukul Education is Better than Modern Schools Education: Dr. Rajendra Prasad
– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, भारत के प्रथम राष्ट्रपति
जिसका मैं बहुत महत्व समझता हूँ, वह है नैतिक या आध्यात्मिक शिक्षण । दुर्भाग्यवश अंग्रेजी राज्य के जमाने में इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया । फलतः आज विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों का ध्यान नैतिकता व आध्यात्मिकता की ओर जाता ही नहीं और एक प्रकार से उनमें इनका अभाव-सा होता है । महापुरुषों के जीवन और उनके आध्यात्मिक विचारों का अध्ययन हमारा एक आवश्यक अंग माना जाना चाहिए ।
बिना नैतिक शिक्षण के कोई भी शिक्षा-पद्धति पूर्ण नहीं कही जा सकती । यह सच है कि सच्चा नैतिक शिक्षण तो चरित्रवान अध्यापकों के जीवन द्वारा ही दिया जा सकता है । फिर भी धर्म-ग्रंथों की जानकारी व उनका अध्ययन शिक्षण की दृष्टि से मैं बहुत जरूरी समझता हूँ ।
आज नैतिकता, ईमानदारी व त्याग की भावना का अभाव है। हम स्वार्थ का अधिक ध्यान रखते हैं और देश के उत्थान का कम । इस परिस्थिति को किस तरह सुधारा जाय ? जब तक हमारी शिक्षण-संस्थाएँ नहीं सुधरेंगी, तब तक यह कठिन काम पूरा नहीं हो सकता । विदेशी शिक्षा-पद्धति शीघ्र बदल जानी चाहिए ।
हमें यह भी स्मरण रखना है कि अपने विश्वविद्यालयों को पुनः संगठित करते समय हम भारत के प्राचीन महाविद्यालयों की उज्ज्वल परम्परा व आदर्श को न भूलें ।
अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा-पद्धति अभारतीय बना दी है, यह हमें ठीक तौर से समझ लेना चाहिए । स्वतंत्र भारत की शिक्षा हमारे देश की प्राचीन संस्कृति के अनुरूप होनी चाहिए । उसकी जड़ इस भूमि में हो, न कि विदेशों के कल्चर में । इसका यह अर्थ नहीं है कि अन्य देशों से हमें कुछ सीखना ही नहीं है, हमें गुण-ग्राहकता का पाठ तो सीखना और सिखाना है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी संस्कृति को ही भूलकर दूसरों की नकल करने में लग जायें ।
आज हमारे विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को इतिहास की अधिक जानकारी विदेशों की दी जाती है और भारत की अपेक्षाकृत कम। दर्शनशास्त्र के अभ्यास-क्रम में भी भारतीय दर्शन को उचित स्थान व महत्व नहीं दिया जाता । यह स्थिति अब शीघ्र बदल जानी चाहिए ताकि हमारे विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति के जीवित केन्द्र बन सकें ।
विद्या का महत्व बहुत है । मनुष्य की मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और आज के जमाने में आर्थिक उन्नति के लिए भी विद्या आवश्यक है । इसलिए विद्या-प्रचार के जो साधन सच्ची सेवा के उदाहरण रखने चाहिए और विद्यार्थियों को इसका मौका देना चाहिए कि वे किसी-न-किसी सेवाकार्य में कुछ भाग ले सकें ।
केवल मौका ही नहीं, जहाँ तक हो सके प्रोत्साहन भी देना चाहिए । इसलिए कोई भी शिक्षालय तब तक पूर्ण नहीं कहा जा सकता, जब तक उसमें यह सभी सामग्री जो स्वास्थ्य, विद्याभ्यास, चरित्र गठन और सेवा के लिए आवश्यक है, प्रस्तुत न हो । मैं गुरुकुल जैसी संस्थाओं का इसलिए आदर करता हूँ कि इनमें यह आदर्श रखकर काम किया जाता है । जहाँ अच्छे अध्यापक और आचार्य मिल जायेंगे और ये आदर्श सामने रखे जायेंगे वहाँ सच्ची और उपयोगी शिक्षा मिलेगी, जो देश के लिए हितकर होगी । स्वास्थ्य के लिए अच्छा स्वास्थ्यकर भोजन, शुद्ध जल-वायु, आवश्यक शारीरिक श्रम और शुद्ध आचरण आवश्यक है । गुरुकुल जैसी संस्थाओं में यह सब उपलब्ध हो सकता है ।
(संकलक : गलेश्वर यादव)
➢ लोक कल्याण सेतु, फरवरी 2019