एक युवक ने यह बात पढ़ी
ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः ।।
” ब्रह्मचर्य की दृढ़ स्थिति हो जाने पर सामर्थ्य का लाभ होता है । ” (योग दर्शन साधन पाद : ३८ )
इतने में एक पतला-दुबला संन्यासी सामने से आता दिखाई दिया । उसे देखकर युवक हँसा और बोला ‘ ब्रह्मचर्य का पालन करके साधु बन गया और शरीर देखो तो दुबला-पतला पतंजलि महाराज के ये वचन पुराने हो गये हैं । वे अतीत के लिए होंगे, अभी के युग के लिए नहीं….!!!!
यह देखो दुबले-पतले संन्यासी और हम कितने मोटे-ताजे !
युवक बुद्धिजीवी रहा होगा, जमानावादी रहा होगा । भोग-रस्सी में बंधा हुआ कुतर्की रहा होगा । वर्तमान में बचाव की कला सीखा हुआ, अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला रहा होगा ।
वह संन्यासी से बोला : ”महाराज ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः । कहा है पतंजलि महाराज ने, लेकिन आपका शरीर तो देखो, कैसा दुबला-पतला है !!! महाराज ! कैसे हैं ? “
फिर आगे कहा : ‘ देखो, हम कैसे मजे से जी रहे हैं ??? सुधरा हुआ जमाना है, चार दिन की जिंदगी है । मजे से जीना चाहिए…..” ऐसा करके उसने अपनी मज़ा लेने की बेवकूफी की डींग हाकी । “
संन्यासी ने सारी बेवकूफी की बातें सुनते हुए भी कहा :- ” चलो, मेरे पीछे-पीछे आओ । “
संन्यासी ब्रह्मचर्य के तेज से संपन्न था । निर्भीकता थी…… वचन सामर्थ्य था ….। वह युवक ठगा-सा साधु के पीछे-पीछे चल पड़ा ।
चलते-चलते दोनों पहुँचे एकांत अरण्य की उस गुफा में, जहाँ संन्यासी का निवासस्थान था । संन्यासी उस युवक को पास की एक गुफा में ले गया तो तीन शेर दहाड़ते हुए आये । ब्रह्मचर्य की मखौल उड़ानेवाला युवक तो संन्यासी के पैरों से लिपट गया ।
संन्यासी ने शेरों पर नज़र डाली और शेर पूंछ हिलाते हुए पालतू पिल्ले की नाईं बैठ गए ।
युवक अभी तक थर-थर काँप रहा था । वह देखता ही रह गया ब्रह्मचर्य की महिमा का प्रताप ! अब उसे पता चला कि ब्रह्मचर्य के तेज में कितना सामर्थ्य छुपा है ।
युवक ने क्षमा माँगी ।
कहाँ तो पतला-दुबला दिखनेवाला संन्यासी और कहाँ तीन-तीन शेरों को पालतू पिल्ले की तरह शांति से बैठा देना !
यह संन्यासी के ब्रह्मचर्य का प्रताप नहीं तो और क्या था ?????
-पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
ऋषि प्रसाद /जुलाई २००१ /१०३ /२६