संग का बड़ा प्रभाव पड़ता है । यदि संत, सद्गुरु एवं भगवान का संग मिलता है तो वह उन्नति के शिखर पर ले जाता
है और यदि दुर्भाग्य से किसी स्वार्थी-दुराचारी का संग मिल जाता है तो वह पतन की गहरी खाई में ले जाता है ।
आज कल दोस्त भी ऐसे ही मिलते हैं । कहते है :- ” चलो मित्र ! सिनेमा देखते हैं । मैं खर्च करता हूँ….चलो ‘ ब्लू
फिल्म ‘ देखते हैं । “
दस…बारह साल के लड़के ‘ ब्लू फिल्म ‘ देखने लग जाते हैं । इससे उनकी मानसिक दुर्दशा हो जाती है, वे ऐसी कुचेष्टाओं से ग्रस्त हो जाते हैं कि हम उसे व्यासपीठ पर बोल भी नहीं सकते ।
वे लड़के बेचारे अपना इतना सर्वनाश कर डालते हैं कि बाप तो धन, मकान, धन्धा आदि दे जाते हैं…. फिर भी कोमलवय में चरित्रभ्रष्ट व उर्जानाश के
कारण वे उन्हें संभाल नहीं पाते हैं । वे न तो अपना स्वास्थ्य संभाल पाते हैं, न माता-पिता की सेवा कर पाते हैं, न
ही उनका आदर कर पाते हैं, और आगे चलकर ठीक से उनका श्राद्धकर्म भी नहीं कर पाते हैं ।
अपने ही विकारी सुख में वे इतना खप जाते हैं कि इनके जीवन में कुछ सत्व नहीं बचता । उनको जरा सा समझाओ तो वे चिढ़ जाते हैं….कुछ बोलो तो
नाराज हो जाते हैं…. घर छोड़कर भाग जाते हैं… डांटो तो आत्महत्या का विचार करने लगते हैं ।
-पूज्य संत श्री आशारामजी बापू