एक दिन शेख फरीद के एक शिष्य ने कहा : ” हुजूर ! मेरी सलवार फट गई है पहनने योग्य नहीं रही । ”
” कोई बात नहीं । मेरे पास एक सलवार रखी है । जाओ, उसे पहन लो……. किंतु रूको….!!!! ”
शिष्य रुक गया ।
” कहिए हुजूर !!! “
” इसे पहन तो लो मगर नाड़ा इतना कसकर बांधना कि मरने से पहले ना खुले । “
अन्य शिष्यों को बात बड़ी अजीब-सी लगी किंतु इस शिष्य ने सोचा कि ” मुर्शिद (सद्गुरु) कभी निरर्थक आज्ञा कर ही नहीं सकते । मुझे अपनी मति को सूक्ष्म बनाकर अर्थ लगाना होगा और उसके लिए मुझे अपने मुर्शिद की ही शरण जाना होगा । ”
शिष्य अपने गुरु का ध्यान करते करते ध्यानस्थ हो गया । कुछ ही समय में उसकी मति में प्रकाश हुआ कि मुर्शिद का संकेत ब्रह्मचर्य-व्रत पालन की ओर है ।
उसने ईमानदारी एवं तत्परतापूर्वक ब्रह्मचर्य का आजीवन पालन किया । शिष्य की सूक्ष्म मति, गुरुवचनों को पालने की दृढ़ता व समर्पण ने उसे शेख फरीद के आध्यात्मिक खजाने का अधिकारी बना दिया ।
विद्यार्थियों को ये संस्कार मिल जाएं और ये बात लग जाये तो कितना मंगल हो उनका…!!!!!
– लोक कल्याण सेतु /अप्रैल २०१८/२५०