Value of Time for Students/ in Our Life; Time Management in Hindi: Samay Ka Sadupyog, Samay ka Mahatva: संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति मनुष्य के लिए असम्भव हो । प्रयत्न और पुरुषार्थ से सब कुछ पाया जा सकता है परंतु एक ऐसी चीज है जिसे एक बार खोने के बाद फिर नहीं पा सकते और यह है समय । कहते हैं : ‘बीता हुआ समय और कहा गया शब्द कभी वापस नहीं बुलाया जा सकता ।’
समर्थ रामदासजी ने ‘दासबोध’ में लिखा है : ‘अपने जीवन का कोई भी क्षण व्यर्थ न जाने देना यही सौभाग्य का लक्षण है ।’
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर समय के बड़े पाबंद थे । वे कॉलेज जाते तो रास्ते में दुकानदार उन्हें देखकर अपनी घड़ियाँ ठीक करते थे, वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे-पीछे नहीं चलते ।
कार्य चाहे व्यावहारिक हो अथवा पारमार्थिक, जो समय संबंधी विवेक और सावधानी नहीं रखता उसे इसका दुष्परिणाम जन्म-जन्मांतर तक भुगतना पड़ता है । जीवन का अधिकांश समय तो बचपन की नासमझी, बुढ़ापे की दुर्बलता, खाने-पीने, विश्राम करने और विविध कार्यों में यूँ ही चला जाता है शेष समय का उपयोग अगर तत्परतापूर्वक नहीं किया और सत्स्वरूप, चैतन्यघन, आनंदकंद परमेश्वर को नहीं जाना तो क्या पता यह सुअवसर फिर कब मिलेगा !
समय की बरबादी का एक बड़ा कारण है किसी काम को आगे के लिए टाल देने की हलकी आदत : ‘आज नहीं, कल करेंगे ।’ इस कल के बहाने से हमारा बहुत समय नष्ट हो जाता है ।
संत कबीरजी चेतावनी देते हुए कहते हैं :
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ॥
कार्य को कल पर न टालें। जिन्हें आज करना है उन्हें आज ही पूरा कर लें । हर कार्य का अपना अवसर होता है । वह निकल जाने पर कार्य का महत्त्व ही समाप्त हो जाता है तथा बोझ भी बढ़ जाता है । वक्त पर न जोतकर असमय जोता हुआ खेत अपनी उर्वरता प्रकट नहीं कर पाता, वक्त पर न काटी गयी फसल नष्ट हो जाती है ।
वॉटरलू के युद्ध में नेपोलियन कुछ ही मिनटों में बंदी बन गया क्योंकि उसका एक सेनापति ग्राउची कुछ मिनट विलम्ब से आया । समय की उपेक्षा करने पर देखते-देखते विजय का पासा पराजय में पलट जाता है, लाभ हानि में बदल जाता है ।
जवानी का समय विश्राम के नाम पर नष्ट करना तो घोर मूर्खता ही है क्योंकि यही वह समय है जिसमें मनुष्य अपने जीवन, अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है । जैसे लोहा ठंडा पड़ जाने के बाद घन पटकने से कोई लाभ नहीं, वैसे ही अवसर निकल जाने पर मनुष्य का प्रयत्न भी व्यर्थ चला जाता है ।
जब समय के सदुपयोग और दुरुपयोग के परिणामों की तुलना की जाती है तब प्रतीत होता है कि दोनों के बीच दिखनेवाला छोटा-सा अंतर अंततः कितना भारी हो जाता है एवं भिन्न परिणामों के रूप में सामने आता है ! समय का सर्वोत्तम प्रतिफल उन्हें मिलता है जो अपना समय सावधानीपूर्वक परम लक्ष्य परमात्मप्राप्ति में लगाने का पुरुषार्थ करते हैं और तदनुरूप अपनी दिनचर्या बनाकर निरंतर उसका अनुसरण करते हैं ।
➢ लोक कल्याण सेतु, मई 2016