इस पंडित की आज्ञा का पालन करो!!………. ज्यों ही उन्होंने ऐसा कहा, भैंसे ने गम्भीर मानवी वाणी में कहना शुरु किया……!!
संत ज्ञानेश्वर (Sant Gyaneshwar) और उनके भाई-बहन निवृत्ति, सोपान एवं मुक्ताबाई को पैठण के ब्राह्मणों ने जाति से बहिष्कृत कर दिया । यह देख एक सज्जन को दया आयी और वह उन्हें अपने साथ पैठण ले गया । उन्हें गाँव में आया देख, लोग रुष्ट हो गये ।
एक पंडित ने ज्ञानेश्वरजी (Sant Gyaneshwarji) की हँसी उड़ाते हुए कहा : ‘‘इसका नाम तो ज्ञानेश्वर है, मगर ज्ञान दो कौड़ी का भी नहीं है। इससे ज्ञानेश्वरजी के स्वाभिमान को ठेस पहुँची ।
उन्होंने कहा : ‘‘मेरा ज्ञान क्या पूछते हो ? मुझे सारे विश्व का ज्ञान है, विश्व के समस्त रूपों में मैं ही समाया हुआ हूँ ।”
‘‘बस ! बस !! बस !!! पंडित ने कहा: ‘‘बड़ा आया है शेखी बघारनेवाला । देखता हूँ, किन-किन रूपों में तू समाया है। वह सामने जो भैंसा दिखायी दे रहा है, शायद वह भी तेरा ही रूप है।”
ज्ञानेश्वरजी (Sant Gyaneshwarji ) ने उत्तर दिया : ‘‘हाँ, हाँ ! मेरा ही रूप है । वह पंडित उस भैंसे के पास गया और उसने उसकी पीठ पर सटाक्-से तीन चाबुक लगाये और ज्ञानेश्वरजी की ओर व्यंग्य से देखा ।”
ज्ञानेश्वरजी (Sant Gyaneshwarji) ने तुरंत अपनी पीठ उसकी ओर कर दी । सब लोग यह देखकर चकित रह गये कि पंडित के चाबुक के निशान उनकी पीठ पर उभर आये थे । किंतु पंडित पर इसका कोई असर न हुआ ।
वह बोला : ‘‘इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । यह तो जादू से भी हो सकता है । यदि तु इस भैंसे के मुँह से वेदमंत्र सुनवाओ, तो जानूँगा कि तुम्हें भी ज्ञान है । तब ज्ञानेश्वरजी भैंसे के पास गये और उसकी पीठ पर हाथ फेरकर कहा : ‘‘इस पंडित की आज्ञा का पालन करो।”
ज्यों ही उन्होंने ऐसा कहा, भैंसे ने गम्भीर मानवी वाणी में कहना शुरु किया : “अग्निमीले पुरोहितम् यज्ञस्य देवमृत्विजं होतारं रत्नधातजम्… ।”
यह देखते ही उपस्थित जन और भी आश्चर्यचकित होकर रह गये । वह पंडित और अन्य शास्त्री ज्ञानेश्वरजी के चरणों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा : ‘‘ज्ञानेश्वर ! मान गये । तुम साक्षात् भगवान हो । अवश्य तुम जगत का कल्याण करोगे ।”
✍🏻सीख : ब्रह्मज्ञानी महापुरुष सामान्य मनुष्य की भाँति जीवन जीते हैं । वे अपना व्यापक ज्ञान स्वरूप दुनिया के सामने नहीं लाते। ऐसे महापुरुष हमें सौभाग्य से मिलते हैं इसलिए कैसी भी परिस्थिति आये उनका सान्निध्य कभी नहीं छोड़ना चाहिए ।