- उड़ीसा में कटक है । एक बार वहाँ प्लेग फैला । मच्छर और गंदगी के कारण लोग बहुत दुःखी थे। उड़िया बाजार में भी प्लेग फैला था । केवल बापूपाड़ा इससे बचा था । बापूपाड़ा में बहुत सारे वकील लोग, समझदार लोग रहते थे । वे घर के आँगन व आसपास में गंदगी नहीं रहने देते थे । वहाँ के कुछ लड़कों ने सेवा के लिए एक दल बनाया, जिसमें कोई 10 साल का था तो कोई 11 का, कोई 15 का तो कोई 18 साल का था । उस दल का मुखिया था एक 12 साल का किशोर ।
- उड़िया बाजार में हैदरअली नाम का एक शातिर गुंडा रहता था । बापूपाड़ा के लड़के जब उड़िया बाजार में सेवा करने आये तो हैदरअली को लगा कि ‘बापूपाड़ा के वकीलों ने मुझे कई बार जेल भिजवाया है। ये लड़के बापूपाड़ा से आये है, हरामी हैं….. ऐसे हैं….. वैसे हैं….’ ऐसा सोचकर उसने उनको भगा दिया । परंतु जो लड़कों का मुखिया था वह वापस नहीं गया । हैदरअली की पत्नी और बेटा भी प्लेग के शिकार हो गये थे । वह लड़का उनकी सेवा में लग गया । जब हैदरअली ने देखा कि लड़का सेवा में लगा है तो उसने पूछा : “तुमको डर नहीं लगा ?”
- “मैं क्यों डरूँ ?”
- “मैं हैदरअली हूँ । मैं तो बापूपाड़ा वालें को गालियाँ देता हूँ । सेवामंडल के लड़कों को मैंने अपना शत्रु समझकर भगा दिया और तुम लोग मेरी पत्नी व बच्चे की सेवा कर रहे हो ? बालक ! हम तुम्हारी इस हिम्मत और उदारता से बड़े प्रभावित हैं । बेटा ! मुझे माफ कर देन, मैंने तुम्हारी सेवा की कद्र नहीं की ।”
- “आप तो हमारे पितातुल्य हैं । माफी देने का अधिकार हमें नहीं है, हमें तो आपसे आशीर्वाद लेना चाहिए ।
- यदि कोई बीमार है तो हमें उसकी सेवा करनी चाहिए । आपकी पत्नी तो मेरे लिए मातातुल्य हैं और बेटा भाई के समान ।”
- हैदरअली उस बच्चे की निष्काम सेवा और मधुर वाणी से इतना प्रभावित हुआ कि फूट-फूट कर रोया ।
- लड़के ने कहा : “चाचाजान ! आप फिक्र न करें। हमें सेवा का मौका देते रहें ।
- आज उस बच्चे का नाम दुनिया जानती है । वह बालक आगे चलकर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नाम से सुविख्यात हुआ ।
- आप महान बनना चाहते हैं तो थोड़ी बहुत सेवा खोज लें। पड़ोस में जो सज्जन हैं, गरीब हैं उनकी सेवा खोज लें। इससे आपकी योग्यता का विकास होगा । सेवा से योग्यता का विकास ही सहज में होता है । सेवक योग्यता का विकास हो इस इच्छा से सेवा नहीं करता, उसकी योग्यता स्वतः विकसित होती है ।
- जो दिखावे के लिए सेवा नहीं करता, सस्नेह और सच्चाई से सेवा करता है, वह न चाहे तो भी भगवान उसकी योग्यता विकसित कर देते हैं ।
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हरिओम पूज्य गुरुदेव की श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम।