माँ ने ऐसे संस्कार डाले कि बालक विनोबाजी के मन से डर हमेशा के लिए विदा हो गया…
एक रात विनोबाजी (Vinoba Bhave) दीवार पर एक काला भूत (बड़ी परछाई) देखकर बहुत डर गये । ऐसा लम्बा आदमी उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था । वे डर के माँ के पास भागे और सारी बात बतायी।
माँ ने हँसते हुए बड़ी सहजता से कहा : “इसमें घबराने की क्या जरूरत है ? वह तो तेरा गुलाम है। तू जैसा करेगा, वह वैसा ही करेगा । बेटा ! किसी चीज से डरना नहीं बल्कि पहले देखना चाहिए कि उसके मूल में कौन है ?”
( वास्तव में वह उन्हीं की परछाईं थी। )
कितनी बुद्धिमान थीं विनोबाजी (Vinoba Bhave) की माँ !! उन्हें नहीं पता था कि मूल खोजने से बच्चे में खोजी वृति बनेगी और वह आगे चलकर निडर,साहसी,महान आत्मा बन जायेगा।
माँ के विचारों से विनोबाजी (Vinoba Bhave) में कुछ आत्मबल आया और उन्होंने सोचा कि ‘कुछ करके देखूँ तो पता चले क्या होता है।’
वे बैठ गये तो वह भी बैठ गया ! उठे तो वह उठ खड़ा हुआ। वे जो भी करें, वह भी वही करे। वे खुश हो गये कि ‘अरे,सच में यह तो मेरा गुलाम है, इससे क्या डरना ??’
एक बार और उन्हें भूत का डर लगा। तब भी उनकी माँ ने उनमें भगवदीय बल भरते हुए
कहा : “परमेश्वर के भक्तों को भूत कभी नहीं सताता। भूत का डर लगे तो लालटेन ले जाओ और भगवन्नाम-जप करो । भूत-वूत जो होगा सब भाग जायेगा।”
माँ के ऐसे आत्मबल जगानेवाले संस्कारों से विनोबाजी (Vinoba Bhave) के मन से डर हमेशा के लिए विदा हो गया।
मनुष्य के विचार ही उसके बंधन और मुक्ति के कारण होते हैं । इसीलिए यदि बचपन से ही बच्चों में निर्भयता,साहस,
ध्यान-भक्ति, आत्मबल के संस्कारों का पोषण किया जाय तो वे ही संस्कार उन्हें महान बनाने में सहायप्रद होते हैं । संत विनोबा भावे, वीर शिवाजी, साईं श्री लीलाशाहजी, पूज्य बापूजी आदि महापुरुषों के महकते जीवन इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण है।