Parents love for their child story in Hindi, Parents love is unconditional, Mother love for child Story in Hindi [Maa, Baap aur Guru Ki Dant me, Hamar Mangal]

मोहन के पिता बहुत आकर्षक मूर्तियाँ बनाते थे । एक दिन मोहन ने कहा “पिताजी आज से मैं भी आपके काम में हाथ बटाऊँगा ।” 

पिता – बेटा ! तू अभी छोटा है ।”

“नहीं पिताजी ! अब में पढ़ाई के साथ मूर्तियां बनाना भी सीखूँगा और वह उत्साह से मूर्तिकला सीखने लगा ।

अनिर्वेदो हि सततं सर्वार्थषु प्रवर्तकः ।

करोति सफल जन्तोः कर्म यच्च करोति सः ॥

‘उत्साह ही प्राणियों को सदा सब प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त करता है और यही उन्हें कार्य में सफलता देता है । (5.12.11)

उत्साह के साथ यदि एकाग्रता भी हो तो सोने पर सुहागा !  इन दो सूत्रों के बल पर कुछ ही समय में मोहन भी आकर्षक मूर्तियां बनाने लगा । उम्र बढ़ने के साथ उसका कला-कौशल भी निखरता गया । लोग उसकी मूर्तियों से प्रभावित होने लगे परंतु उसके पिता हमेशा कुछ-न-कुछ कमी निकालते रहते थे ।

पिता की प्रशंसा प्राप्त करने के लिए मोहन ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया पर वह सफल न हो सका ।

एक दिन मोहन ने एक मूर्ति मित्र के हाथ पिताजी के पास भेजी और स्वयं दरवाजे की ओट में छिप गया । पिता मूर्ति को देखते ही बोल पड़े. “वाह ! कितनी सुंदर मूर्ति है । इसे बनाने वाला कोई महान कलाकार ही होगा !”

मोहन सामने आकर बोला : “पिताजी यह मूर्ति मैंने ही बनायी है । आखिर आपको मानना ही पड़ा कि मैं एक महान कलाकार हूँ ।”

“बेटे ! यह अहंकार सब योग्यताओं को खा जाता है । बचपन में मैंने भी यही गलती की थी लोगों की वाहवाही से मुझमें अहंकार आ गया था । तुम्हारे दादाजी की रोक-टोक मुझे अच्छे नहीं लगती थी । अतः आज भी मेरी मूर्तियों की सुंदरता तुम्हारे दादाजी की मूर्तियों की सुंदरता से कम है । प्रशंसकों की बातों से कहीं तुम्हारी योग्यता कुंठित न हो जाए इसलिए मैं तुम टोकता रहता हूँ ।”

पिता की बात सुनकर बेटे की आँखों में पश्चाताप की अश्रुधार बह चली । उसने पिता से क्षमा मांगते हुए आगे बढ़ने का संकल्प लिया ।

माता-पिता व गुरुजनों के हृदय में हमारे उत्थान की भावना होती है । सद्गुरु तो हमारा परम मंगल चाहते हैं । उनकी डांट में भी करुणा व कल्याण छिपा होता है । उस समय भले ही उनकी बात समझ में न आये पर उनकी रोक-टोक तथा डांट हमारे दोषों को नष्ट कर देते हैं । जिसके जीवन में कोई रोकने-टोकने तथा सावधान करने वाला नहीं है, वह अभागा है । माता-पिता, हितैषियों तथा परम हितैषी सद्गुरु की बातों का जो गलत अर्थ लेता है, उसके पतन में देर नहीं लगती । अतः कभी भी माता व सद्गुरु की बातों को गलत अर्थ में नहीं लेना चाहिए ।

दुर्जन की करुणा बुरी, भलो साँई को त्रास ।

सूरज जब गर्मी करे, तब बरसन की आस ।।

– लोक कल्याण सेतु, मार्च 2013