एक बार पूज्य बापूजी सेवक से बोले : ‘‘आज उबटन से नहायेंगे, बहुत दिन हो गये उबटन से नहाये हुए ।

कुटिया में जो उबटन था उसमें घुन पड़ गये थे । 
बापूजी को सेवक ने बताया कि ‘‘उबटन में घुन पड़ गये हैं ।” 
‘‘लाओ, दिखाओ कितने घुन हैं ?” देखा तो ढेर सारे थे।

बापूजी बोले : ‘‘इसको फेंकना नहीं, इसको ऐसा-का-ऐसा रख दो । इनको खाने-पीने दो, जीने दो । फिर बापूजी ने ऐसे ही स्नान किया ।”

आमतौर पर किसी चीज में कीड़े आदि पड़ जाते हैं तो लोग उसे तत्काल फेंक देते हैं परंतु ‘उससे कितने ही जीव-जंतुओं का जीवन पोषित हो सकता है’, ऐसी हितदृष्टि तो ‘सर्वभूतहिते रतः’ बापूजी जैसे महापुरुषों की ही होती है ।

~ बाल संस्कार पाठ्यक्रम द्वारा