Cold Drink Pine Ke Nuksan. Harmful Side effects of drinking Pepsi, Coca Cola, Sprite, Thums Up, Mirinda and Other Soft Drinks Disadvantages in Hindi:
सॉफ्ट ड्रिंक्स लोगों को अस्थि -रोग, दंत-रोग, कैंसर और मोटापा जैसी बीमारियों प्रदान कर रहे हैं । अफसोस की बात तो यह कि पढ़े-लिखे और सम्पन्न तबके के लोग यह सब जानकर भी इन घातक पेयों की ओर आकर्षित होते हैं और इन्हें पीना अपनी शान समझते हैं ।
कोका-कोला और पेप्सी-कोला जैसी कंपनियों देश के आर्थिक और प्राकृतिक संसाधनों का जिस कदर दोहन कर रही हैं, वह हम सबके लिए चिंता की बात होनी चाहिए ।
सॉफ्ट ड्रिंक्स के नाम से कुख्यात इन सब कार्बोनेटेड रंगीन और खुशबूदार मीठे पानी के अलावा कुछ नहीं होता । इनमें अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में कीटनाशकों की मात्रा भी 70 गुना तक ज्यादा है ।
ये पेय बनाने वाली कंपनियाँ लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ तो कर ही रही हैं, साथ ही भूमिगत जल का भी बेशुमार मात्रा में दोहन कर रही हैं । पेप्सी और कोकाकोला के देशभर में लगभग 85 बोटलिंग प्लांट्स हैं । जहाँ-जहाँ ये प्लांट लगे हैं, वहाँ आस-पास के कुएँ लगभग सूख गए हैं । खेत बंजर हो रहे हैं । गाँव में रहनेवाले लोग पानी के लिए मीलों भटक रहे हैं ।
सवाल यह है कि गरीब लोगों का पानी इस तरह क्यों छीना जा रहा है ? क्या हमें अपने ही देश में दूध से भी ज्यादा महंगा पानी खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा । सोची-समझी रणनीति के तहत यह देश का पैसा देश के बाहर ले जाने की साजिश है और इस साजिश में हमारे यहाँ के राजनेता तथा नौकरशाह भी शामिल हैं ।
हमसे कहा जाता है कि इन कंपनियों का विरोध करने से देश में विदेशी पूंजी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, लेकिन मेरा मानना है कि संदेश विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ नहीं जाएगा बल्कि यह संदेश जायेगा कि देश और देशवासियों का अहित करनेवाला कोई भी पूँजी निवेश भारतवासियों को स्वीकार नहीं है ।
इससे चंद राजनेताओं और नौकरशाहों पर दबाव बनाकर या उन्हें प्रलोभन देकर अपना हित साधने वाली विदेशी कंपनियाँ चेतेंगी और सोच-समझकर निवेश करेंगी ।
विदेशी निवेश विकास से जुड़ी अवधारणा है । इस कसौटी पर खरे उतरनेवाले निवेश के आने पर हमें खुश और जाने पर दुःखी होना चाहिए । हालांकि इन अनजान कंपनियों का विरोध कर रहे लोगों को इन कंपनियों की ताकत का अंदाजा है ।
हम लोगों को यह गलतफहमी कतई नहीं है कि ये कंपनियां बहुत जल्दी भारत से चली जायेंगी । हाँ, यह विश्वास हमें जरूर है कि या तो आनेवाले पाँच-छः वर्षों में ये कंपनियाँ भारत पर पूरी तरह छा जाएंगी, या फिर भारत छोड़ देंगी ।
इन कंपनियों से देशभक्त लोगों की निर्णायक लड़ाई शुरू हो चुकी है और इसमें देश की राजनैतिक जमात और नौकरशाह वर्ग भी इन कंपनियों के साथ हैं ।
– वंदना शिवा
दैनिक भास्कर,
जबलपुर 12 मार्च 2005
– ऋषि प्रसाद, जुलाई 2005