मरखशाह द्वारा मुसीबतें आयीं और लोग समुद्रतट पर गये। अपनी सुषुप्त शक्तियों को जागृत किया। उनके संकल्पबल ने व्यापक चैतन्य को रत्नराय के घर झुलेलाल के रूप में प्रकट करवाया।
तो हे साधक ! तुम्हारे भीतर छुपा हुआ वही चैतन्य, लालों का लाल वह आत्मदेव तुम्हारी साधना और दृढ़ता से क्या अनावृत नहीं हो सकता ?
पिछले युग का यश उस युग के यशस्वियों को मुबारक हो, क्योंकि उनमें भी तुम्हीं वर्तमान थे। यदि अपने स्वरूप में जाग जाओ तो तुम अपने को सम्पूर्ण यश और प्रकृति के…. अनन्त अनन्त ब्रह्माण्डों के स्वामी के रूप में पहचान लोगे। तुच्छ अहं के विलय, तरंग के विलय होते ही आत्मस्वरूप में जाग जाओगे।
त्याग दो इस तुच्छ देहाध्यास को। आत्मानुभव की यात्रा करो। कब तक इस जगज्जाल में, इस स्वप्नवत् संसार में गोते लगाते रहोगे ?
~झूलेलाल अवतार लीला