(हरिद्वार कुम्भ : 14 जनवरी से 27 अप्रैल 2021)

वैदिक संस्कृति का अनमोल प्रसाद

कुम्भ पर्व की महिमा हजार साल, लाख साल, पाँच लाख साल पहले की है ऐसी बात नहीं है ।

भगवान राम का प्राकट्य करने के लिए वैदिक संस्कृति में जो विधि-विधान लिखा था, उसका आश्रय लेकर यज्ञ किया गया और भगवान राम का, परमात्मा का आह्वान हो, इस प्रकार संकल्प करके यज्ञ किया गया । तो मानना पड़ेगा कि भगवान राम के पहले वेद हैं और वेदों में कुम्भ पर्व की महिमा आ रही है ।

अथर्ववेद में भगवान ब्रह्मा जी ने कहा है कि ”हे मनुष्यों ! मैं तुम्हें सांसारिक सुखों को देने वाले 4 कुम्भ पर्वों का निर्माण कर 4 स्थान – हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक प्रदान करता हूँ ।”

कुम्भ में संत व सत्संग की महिमा

ब्रह्मनिष्ठ संत की दृष्टि से जो तरंगें निकलती हैं, उनकी वाणी से जो शब्द निकलते हैं, वे वातावरण को पावन करते हैं । संत के शरीर से जो तन्मात्राएँ निकलती हैं वे वातावरण में पवित्रता लाती हैं ।

अगर कुम्भ में सच्चे साधु-संत न आयें तो फिर देखो, कुम्भ का प्रभाव घट जायेगा । कुम्भ का प्रभाव संतों के कारण है ।

आस्था वाला स्थान और फिर ग्रहों का योग – यह संयोग आपके अंदर अपूर्व (पुण्य या अपूर्व उसे कहते हैं जो हमें पावन करे, जो हमें इस शरीर में अभीष्ट दिलाये, सुखद पदार्थ दिलाये और यह शरीर छोड़ने के बाद परलोक में भी हमें अभीष्ट दिलाये ) की उत्पत्ति कर देता है, पुण्य प्रकट कर देता है । फिर उसमें आस्था हो, रहने, खाने- पीने में संयम हो और कुछ जप – तप का अऩुष्ठान हो तो उस पुण्य में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाती है ।

सामान्य व्यक्ति को जो पुण्य होता है उससे श्रद्धालु को ज्यादा पुण्य होता है । श्रद्धालु का जो पुण्य होता है उससे श्रद्धा सहित जो सत्संगी है उसको ज्यादा होता है ।

श्रद्धासहित जो सत्संगी है उससे भी ज्यादा उनको परम पुण्य होता है जिनके जीवन में सत्संग के साथ आत्मविचार का प्रकाश भी है । उनको तो परम पुण्य – परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के द्वार खोलने का अवसर मिल जाता है ।

जिनको सत्संग नहीं मिलता, सद्वृत्ति जगाने की युक्ति नहीं मिलती, वे बेचारे तीर्थ में आ के भी श्रीहीन हो के, शरीर को भिगोकर चले जाते हैं ।

मेहनत-मजूरी हो जाती है और थोड़ा फल मिलता है पुण्य का । लेकिन जिनको सत्संग मिलता है, उनको श्री, विजय, विभूति (ऐश्वर्य), ध्रुवा नीति (अचल नीति) – यह सब साथ में मिल जाता है ।

➢ स्रोत : ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018