बच्चे जैसा देखते हैं, जैसा सुनते हैं देर-सवेर वैसी दिशा में जाते हैं । गंदी फिल्में देखकर हमारे ऊँचे संस्कार वाले बच्चों के जीवन का ह्रास न हो और उनमें अच्छे संस्कार पड़ें इस हेतु से ‘बाल संस्कार केन्द्र’ प्रारम्भ हुए ।
वास्तव में बच्चों में बुराई नहीं होती है, बुराई वे देख-देख के, सुन-सुन के सीखते हैं । वास्तव में तो बुद्धि सच्चाई और सज्जनता के पक्ष में ही रहती है । मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि ‘बाल संस्कार केन्द्र’ में जाने वाले बच्चों को कुछ-न-कुछ सत्संस्कार मिलते हैं । बच्चे माता-पिता का आदर करते हैं, सूर्यनारायण को अर्घ्य देते हैं, तुलसी के पत्तों का सेवन करने से रोगों से बचते हैं और पवित्र संस्कारों के दृढ़ होने पर दुर्गुण-दुराचार से और दुर्गुणी-दुराचारियों के प्रभाव से भी बचते हैं ।