- स्वामी अखंडानंद जी सरस्वती संत ‘जानकी’ घाटवाले बाबा के दर्शन करने के लिए जाते थे । उन्होंने अखंडानंदजी (ये अपने आश्रम में भी आये थे) को यह घटना बतायी थी कि रामवल्लभशरण इतने महान पंडित कैसे हुए ?
- रामवल्लभशरण किन्हीं संत के पास गये ।
- संत ने पूछाः “क्या चाहिए ?”
- रामवल्लभशरणः “महाराज ! भगवान श्रीराम की भक्ति और शास्त्रों का ज्ञान चाहिए ।”
- ईमानदारी की माँग थी । सच्चाई का जीवन था। कम बोलने वाले थे । भगवान के लिए तड़प थी । संत ने पूछाः “ठीक है । बस न ?”
- “जी, महाराज ।”
- संत ने हनुमानजी का मंत्र दिया । वे एकाग्रचित्त होकर तत्परता से मंत्र जपते रहे । हनुमानजी प्रकट हो गये ।
- हनुमानजी ने कहाः “क्या चाहिए ?”
- “भगवत्स्वरूप आपके दर्शन तो हो गये । शास्त्रों का ज्ञान चाहिए ।”
- हनुमानजीः “बस, इतनी सी बात ? जाओ, तीन दिन के अंदर जितने भी ग्रन्थ देखोगे उन सबका अर्थसहित अभिप्राय तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जायेगा ।”
- वे काशी चले गये और काशी के विश्वविद्यालय आदि के ग्रंथ देखे । वे बड़े भारी विद्वान हो गये । यह तो वे ही लोग जानते हैं जिन्होंने उनके साथ वार्तालाप किया और शास्त्र-विषयक प्रश्नोत्तर किये हैं। दुनिया के अच्छे-अच्छे विद्वान उनका लोहा मानते हैं ।
- केवल मंत्रजाप करते-करते अनुष्ठान में सफल हुए । हनुमानजी प्रकट हो गये और तीन दिन के अंदर जितने शास्त्र देखे उन शास्त्रों का अभिप्राय उनके हृदय में प्रकट हो गया ।
- कैसी दिव्य महिमा है मंत्र की ! ~ भगवन्नाम जप महिमा साहित्य से