Benefits of Tilak, Hindu Tilak Lagane ke Fayde
- भारतीय संस्कृति में हित की प्रधानता है । अतः यहाँ की प्रत्येक शास्त्रीय व्यवस्था में मनुष्य का सर्वांगीण विकास निहित है, फिर चाहें वह माता पिता-सद्गुरु को प्रणाम करने की हो, चाहें ब्राह्ममुहूर्त में उठने की अथवा तो ललाट पर चंदन, कुंकुम, हल्दी या तुलसी-जड़ की मिट्टी का तिलक करने की ।
- ललाट पर दोनों भौंहों के बीच विचार शक्ति का केन्द्र है । योगी इसे ‘आज्ञाचक्र’ कहते हैं । इसे ‘शिवनेत्र’ अर्थात् कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है । वैज्ञानिकों ने इसे ‘पीनियल ग्रंथि’ नाम दिया है । प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश से इसका गहरा संबंध है । ध्यान-धारणा के माध्यम से साधक में जो प्रकाश का अवतरण आज्ञाचक्र में होता है, उसका कोई न कोई संबंध इस स्थूल अवयव से अवश्य है ।
- हमारे ऋषियों को यह तथ्य भलीभाँति पता था, अतः उन्होंने तिलक करने की प्रथा को पूजा-उपासना के साथ-साथ हर शुभ कार्य से जोड़कर इसे धर्म-कर्म का एक अभिन्न अंग बना दिया, ताकि नियमित रूप से उस स्थान के स्पर्श से उसे उद्दीपन मिलता रहे और वहाँ से सम्बद्ध स्थूल सूक्ष्म अवयव जागरण की प्रक्रिया से जुड़ सकें ।
- ऋषि तो करुणा और संवेदना की प्रतिमूर्ति होते हैं अतः उन्होंने तिलक के माध्यम से जहाँ सर्वसाधारण की रुचि को धार्मिकता की ओर मोड़ना चाहा, वहीं उनकी आत्मिक प्रगति की दिशा में प्रथम चरण का द्वार भी खोल दिया ।
- तिलक-धारण वस्तुतः तीसरा नेत्र जागृत करने की दिशा में एक आध्यात्मिक कदम है ।
- आज्ञाचक्र (भूमध्य) में किया गया चंदन या सिंदूर आदि का तिलक विचारशक्ति व आज्ञाशक्ति को विकसित करता है । इसलिए हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करते समय ललाट पर तिलक किया जाता है । इससे कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय करने की क्षमता विकसित होती है । हमारे शास्त्रों में तिलक लगाने की बड़ी महिमा गायी गयी है :
स्नानं दानं तपो होमो देवता पितृकर्म च ।
तत्सर्वं निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ।
- ‘बिना तिलक लगाये स्नान, दान, तप, हवन, देवकर्म, पितृकर्म सब कुछ निष्फल हो जाता है ।’ (ब्रह्मवैवर्त पुराण)
- पूज्य बापूजी को चंदन का तिलक लगाकर सत्संग करते हुए करोड़ों लोगों ने देखा है । वे लोगों को भी तिलक करने के लिए प्रोत्सहित करते हैं ।
- कहा जाता है कि अधिकांश स्त्रियों का मन स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर केन्द्र में रहता है । इन केन्द्रों में भय, भाव व कल्पना की अधिकता होती है । वे भावना एवं कल्पनाओं में बह न जाएँ, उनका शिवनेत्र, विचारशक्ति का केन्द्र विकसित हो इस उद्देश्य से ऋषियों ने अनिवार्य रूप से स्त्रियों के लिए तिलक लगाने का विधान रखा है ।
वैज्ञानिक विवेचन
- बिंदिया में उपस्थित लाल तत्व पारे का रेड ऑक्साइड होता है, जो कि शरीर के लिए लाभदायक है । बिंदिया एवं शुद्ध चंदन के प्रयोग से मुखमंडल झुर्री रहित बनता है । माँग में टीका पहनने से मस्तिष्क संबंधी क्रियाएँ नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित रहती हैं एवं मस्तिष्कीय विकार नष्ट होते हैं लेकिन वर्तमान में जो केमिकल की बिंदिया चल पड़ी है वह लाभ के बजाय हानि करती है ।
- ललाट पर नियमित रूप से तिलक करते रहने से मस्तिष्क के रसायनों – सेराटोनिन व बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित रहता है, जिससे मनोभावों में सुधार आकर उदासी दूर होती है, सिरदर्द नहीं होता तथा मेधाशक्ति तीव्र होती है ।
- हमारे मन में जो संकल्प उठता है वह सर्वप्रथम मस्तिष्क की धमनियों में ही प्रकम्पन पैदा करता है । उसके बाद वह संबंधित इन्द्रियों को कार्यानुकूल होने को सज्जित करता है । अतः हमारा मस्तिष्क जितना विकार रहित होगा उतना ही हम प्रत्येक बात की वास्तविकता का शुद्ध विश्लेषण कर पायेंगे । हमारे ज्ञानतंतुओं का विचारक केन्द्र भृकुटि और ललाट का मध्य भाग है, इसलिए हमारे महर्षियों ने ज्ञानतंतुओं के केन्द्रस्थान में ही तिलक धारण करने का विधान किया है । माथे पर तिलक लगाना मानो ऊर्ध्वगति का संकेत-चिह्न है ।
तिलक का तत्वदर्शन
- तिलक का तत्वदर्शन अपने-आपमें अनेक प्रेरणाएँ सँजोये हुए है । तिलक त्रिपुंड प्रायः चंदन का होता है । चंदन की प्रकृति शीतल होती है । शीतल चंदन मस्तक पर लगाने के पीछे भाव यह है कि चिंतन का केन्द्रीय संस्थान जो मस्तिष्क के रूप में खोपड़ी के अंदर स्थित है, वह हमेशा शीतल बना रहे । उसके विचार और भाव इतने श्रेष्ठ हों कि वह अपनी तरह औरों को भी शांति, शीतलता और प्रसन्नता प्रदान करता रहे ।
तिलक के प्रकार व लगाने की विधि
- सामान्यतया चंदन, कुंकुम, हल्दी, यज्ञ की राख, गौ-धूलि, तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी आदि का तिलक लगाया जाता है । चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है । व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं । श्वेत और रक्त चंदन भक्ति के प्रतीक हैं । इनका प्रयोग भजनानंदी लोग करते हैं । केसर एवं गोरोचन ज्ञान तथा वैराग्य के प्रतीक हैं । ज्ञानी, तत्वचिंतक और विरक्त हृदय वाले इसका प्रयोग करते हैं ।
- कुंकुम में हल्दी का संयोजन होने से त्वचा को शुद्ध रखने में सहायता मिलती है और मस्तिष्क के स्नायुओं का संयोजन प्राकृतिक रूप में हो जाता है । संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने में शुद्ध मिट्टी का तिलक महत्वपूर्ण योगदान देता है । यज्ञ की भस्म का तिलक करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है ।
उँगलियों के प्रयोग का विधान
अनामिका शांतिदा प्रोक्ता मध्यमायुष्करी भवेत् ।
अंगुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्ता तर्जनी मोक्षदायिनी ॥
- ‘अनामिका से तिलक करने से सुख-शांति, मध्यमा से आयु, अँगूठे से स्वास्थ्य और तर्जनी से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।” (स्कंद पुराण)
- तर्जनी से लाल या श्वेत चंदन का, मध्यमा से सिंदूर का तथा अनामिका से केसर, कस्तूरी, गोरोचन का टीका लगाना चाहिए । इनके लिए क्रमशः पूर्व दिशा, उत्तर दिशा और पश्चिम दिशा निर्धारित हैं । इस ओर मुँह करके ही इनका तिलक धारण करना चाहिए । अंगूठे से भी चंदन तिलक करने की परम्परा है ।
- इस प्रकार तिलक की परम्परा के पीछे कितना सूक्ष्म विज्ञान है ! इसको समझकर भारतीय संस्कृति की इस अनमोल देन का भरपूर लाभ उठायें ।
-
– लोक कल्याण सेतु, जनवरी 2012