Mahatma GandhiJi Philosophy of Truth [Satya Vachan]: बुद्धि को सत्य की पक्षपातिनी बनाइये, जैसे गाँधीजी ने बनायी । गाँधीजी ने अंग्रेजों द्वारा गरीबों के शोषण की जानकारी पाने के लिए कि अंग्रेजों को कितनी कमाई होती है और वे कितनी तनख्वाह देते हैं, इसके विवरण की फाइल माँगी । लेकिन अंग्रेजों ने फाइल देने के लिए मना कर दिया । गाँधीजी ने कहा : ‘हम सत्याग्रह करेंगे, भूख हडताल करेंगे ।’
गाँधीजी के सत्याग्रहियों में से एक व्यक्ति अंग्रेजों के दफ्तर में ऊँचे पद पर काम करता था । वह रात्रि को दफ्तर में जाकर वह फाइल लाया, जिसमें सारी जानकारियाँ थीं और सुबह गाँधीजी को देते हुए बोला, ‘‘मैं यह फाइल चुराकर ले आया हूँ । उनकी कितनी कमाई होती है और वे कितनी तनख्वाह देते हैं, इसका सारा विवरण इस फाइल में है । आप देख लीजिये और इसकी प्रतिलिपि बनवा लीजिये ।”
गाँधीजी गंभीर हो गये और बोले : ‘‘जो सत्य सारी सृष्टि का पालक-पोषक है, उसका पक्ष छोडकर हम असत्य में जायें ? तुम फाइल ले आये हो, गलत किया तुमने । अब इसे देखना मत । मैं यही फाइल उन अंग्रेजों के हाथों से ही लूँगा ।”
सदाचार का मतलब केवल सत्य बोलना ही नहीं है बल्कि सत्य-आचरण करना भी है । गाँधीजी ने सत्य का समर्थन किया, सुख का नहीं । ‘चाहे असुविधा सहनी पडे, चाहे अंग्रेजों का कोप सहना पडे लेकिन हम सत्य को नहीं छोडेंगे ।’ – ऐसा उनका मत था । कुछ समय में वातावरण ऐसा जमा कि अंग्रेजों ने अपने हाथों से गाँधीजी को फाइल दी और गाँधीजी सफल हुए । अंग्रेजों को शोषण से बाज आना पडा और किसानों की पुष्टि हुई ।