Brahmacharya Spiritual Life Ki Base/ Foundation Hai : वासनाक्षय, मनोनाश और बोध – ये तीन चीजें जिसने सिद्ध कर ली वह पुरुष जीवन्मुक्त हो जाता है।
 
वासनाक्षय के लिये ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
 
कैसा भी योगाभ्यास करने वाला साधक हो, धारणा, ध्यान, त्राटक आदि करता हो लेकिन यदि वह ब्रह्मचर्य का आदर नहीं करता, संयम नहीं करता तो उसका योग सिद्ध नहीं होगा।
 
साधना से लाभ तो होता ही है लेकिन ब्रह्मचर्य के बिना उसमें पूर्ण सफलता नहीं मिलती।
 
जो लोग ‘संभोग से समाधि‘ वाली बातों में आ गये हैं वे सब रोये हैं।
 
संभोग से समाधि नहीं होती, संभोग से सत्यानाश होता है साधना का।
 
बड़े-बड़े योगी भी संभोग की ओर गये हैं तो उनका पतन हुआ है फिर भोगी की क्या बात करें? संभोग से यदि समाधि उपलब्ध होती तो करोड़ों मनुष्य कर ही रहे हैं, कीट-पतंग जैसा जीवन बिता रहे हैं। समाधि किसकी लगी आजतक …??? इस प्रकार किसी को समाधि न लगी है न कभी लगेगी।
 
राम के सुख के बाद संसार में यदि अधिक-से-अधिक आकर्षण का केन्द्र है तो वह काम का सुख है।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध इन पाँचों विषयों में स्पर्श का आकर्षण बहुत खतरनाक है।
 
व्यक्ति को काम सुख बहुत जल्दी नीचे ले आता है। बड़े-बड़े राजा-महाराजा-सत्ताधारी उस काम-विकार के आगे तुच्छ हो जाते हैं।
काम-सुख के लिये लोग अन्य सब सुख, धन, वैभव, पद-प्रतिष्ठा कुर्बान करने के लिये तैयार हो जाते हैं।
 
इतना आकर्षण है काम-सुख का। राम के सुख को प्राप्त करने के लिए साधक को इस आकर्षण से अपने चित्त को दृढ़ पुरुषार्थ करके बचाना चाहिये।
 
जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा।
 
लेकिन जिसके ब्रह्मचर्य का कोई ठिकाना नहीं ऐसे व्यक्ति के आगे साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण आ जायें, भगवान विष्णु आ जायें, ब्रह्माजी आ जायें, माँ अम्बाजी आ जायें, सब मिलकर उपदेश करें फिर भी उसके विक्षिप्त चित्त में आत्मज्ञान का अमृत ठहरेगा नहीं।
 
जैसे धन कमाने के लिए भी धन चाहिये, शांति पाने के लिये भी शांति चाहिये, अक्ल बढ़ाने के लिये भी अक्ल चाहिये, वैसे ही आत्म-खजाना पाने के लिये भी आत्मसंयम चाहिये।
 
ब्रह्मचर्य पूरे साधना-भवन की नींव है। नींव कच्ची तो भवन टिकेगा कैसे ???