A Short Story of Akha Bhagat in Hindi: अखा भगत का जन्म गुजरात के जेतपुर गाँव में ई.स. 1591 में श्रीमाली सोनी कुटुम्ब में हुआ था ।
छोटी उम्र में ही इनके पिता व बहन का स्वर्गवास हो गया था । फिर इनकी शादी हुई तो कुछ दिनों में पत्नी भी गुजर गयी ।
इन्होंने दूसरी शादी की किंतु वह पत्नी भी निःसंतान ही गुजर गयी । संसार के कड़वे अनुभव होने पर इनको संसार से वैराग्य हो गया ।
संसार में कोई सार नहीं है, यह जानकर वे किन्हीं ब्रह्मज्ञानी महापुरुष की खोज में काशी चले गये । पहले तो इधर-उधर खूब कड़वे-खट्टे अनुभव हुए लेकिन सत्शिष्य को सद्गुरु ब्रह्मानंद मिल ही गये ।
वेदविद् ब्रह्मानंद स्वामीजी के दर्शन करते ही अखा भगत को लगा कि सच्चे गुरु की उनकी खोज पूरी हो गयी है । उन्होंने ब्रह्मानंद स्वामीजी से स्वयं को शिष्य के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना की ।
ब्रह्मानंदजी ने कहा : “तुम वैश्य जाति के हो इसलिए मैं तुम्हें शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता ।”
परंतु अखाजी ने उन्हें गुरु मान लिया था, अतः वे कुटीर के बाहर छुपकर गुरु-उपदेश सुनने लगे ।
एक बार ब्रह्मानंद स्वामी रात्रि के अंतिम प्रहर में अपने खास शिष्यों को वेद-विद्या का गूढ़ ज्ञान दे रहे थे । गुरुजी उत्साह से बोले जा रहे थे किंतु सामने बैठे शिष्य नींद में झोंके खा रहे थे ।
गुरुजी ने कहा : “माया का स्वरूप मैंने बताया, तुम क्या समझे यह बताओ ।”
पर शिष्यों द्वारा कुछ भी जवाब नहीं मिला । गुरुजी ने फिर से पूछा तो भी वही स्थिति ! सभी नींद में थे तो क्या जवाब दें ? गुरुदेव के हृदय से एक निःश्वास निकल गया । इतने में कुटीर के बाहर से आवाज आयी : “गुरुदेव आज्ञा दें तो यह सेवक आपके प्रश्न का उत्तर दे सकता है ।”
गुरुजी चौंके और एकदम खड़े होकर बाहर आये । देखा कि मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए एक लड़का खड़ा है ।
गुरुजी के सामने आते ही वह उनके चरणों में आकर गिर पड़ा और कहने लगा : “गुरुजी ! क्षमा कीजिये, मैं रोज छुपकर आपका उपदेश सुनता था ।”
गुरुदेव ने उसे गले लगा लिया और कहने लगे : “बाहर नहीं, अब तू अंदर बैठकर उपदेश सुनेगा । मैं तुझे अपना शिष्य स्वीकार करता हूँ ।”
गुरुजी ने देखा कि अन्य शिष्यों से इसकी लगन, तड़प ज्यादा है अतः उसे स्नेह से ज्ञानदान देने लगे । आखिर अखा भगत ने आत्मज्ञान को, जीवन के पूर्ण फल को पा लिया ।