खडूरगाँव (जि. अमृतसर,पंजाब) के लहणा चौधरी गुरुनानक देव जी (Guru Nanak Dev Ji) के शरणागत हुए । गुरु नानक देवजी (Guru Nanak Dev Ji) उन्हें भाई लहणा (Bhai Lehna ji) कहते थे।

एक बार गुरुनानक देवजी (Guru Nanak Dev Ji) ने अपने काँसे का कटोरा जान बूझकर कीचड़ के गड्ढे में फेंक दिया और अपने पुत्रों और शिष्यों को आदेश दिया कि वे कटोरा निकाल लायें।
गड्ढे में घुटने से ऊपर तक कीचड़ भरा हुआ था। सब लोग कोई न कोई बहाना बनाकर खिसक गए । भाई लहणा (Bhai Lehna ji) तुरंत गड्ढे में उतर गए और कटोरा ले आये। उन्हें इस बात की रत्तीभर भी चिंता नहीं हुई कि कीचड़ उनके शरीर से लिपट जायेगा और उनके कपड़े कीचड़ से भर जायेंगे। 
उनके लिए तो गुरुदेव का आदेश ही सर्वोपरि है ।

एक दिन कुछ भक्त लंगर खत्म होने के बाद डेरे में पहुँचे । उन्हें भूख लगी थी । गुरुनानक देवजी (Guru Nanak Dev Ji) ने अपने दोनों पुत्रों को सामने खड़े कीकर के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा : “तुम दोनों इस पेड़ पर चढ़ जाओ और डालियों को जोर-जोर से हिलाओ। इससे तरह-तरह की मिठाइयाँ टपकेंगी। उन्हें इन लोगों को खिला देना।”

गुरुनानक की बात सुनकर उनके दोनों पुत्र आश्चर्य से उनका मुँह देखने लगे।
पेड़ से…. और वो भी कीकड़ के पेड़ से मिठाइयाँ  ?? भला कैसे टपक सकतीं हैं ??

“पिताजी अकारण ही हमारा मजाक उड़वाना चाहते हैं ।” -यह सोचकर वे दोनों चुपके से वहाँ से खिसक गए ।

गुरुनानक जी (Guru Nanak Dev Ji) ने अपने अन्य शिष्यों से भी यही कहा परंतु कोई तैयार नहीं हुए । भाई लहणा (Bhai Lehna ji) उठे, कीकर के पेड़ पर जा चढ़े और उन्होंने पेड़ की डालियाँ जोर जोर से हिलानी शुरू कर दीं ।
दूसरे ही पल काँटों से भरे कीकड़ के पेड़ से तरह तरह की स्वदिष्ट मिठाइयाँ टपकने लगीं । भाई लहणा ने नीचे उतरकर मिठाइयाँ इकट्ठी की और आये हुए भक्तों को खिला दीं।

पुत्रों ने नानकजी (Guru Nanak Dev Ji) की अवज्ञा की लेकिन भाई लहणा (Bhai Lehna ji) के मन में ईश्वर स्वरूप गुरु नानकजी के किसी भी शब्द के प्रति अविश्वास का नामो निशान तक नहीं था ।
कैसे थे वे शिष्य !!! जिन्होंने गुरुओं का माहात्म्य जानकर समझा कि गुरुओं की कृपा किस तरह पचायी जाती है।

सीख :- जो शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन तत्परता पूर्वक करता है वह कैसी भी परिस्थिति हो वह अपने गुरु की कृपा को पचाकर परम पद पा लेता है।

~बाल संस्कार पाठ्यक्रम सित.-अक्टूबर २०१५