ʹश्रीरामचरित मानसʹ (Shri Ramcharitmanas) में आता है :-
गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई ।
जौ बिरंचि संकर सम होई ।।
“गुरु के बिना कोई भवसागर नहीं तर सकता, चाहें वह ब्रह्माजी और शंकरजी के समान ही क्यों न हो !”
सदगुरु का अर्थ शिक्षक या आचार्य नहीं है । शिक्षक अथवा आचार्य हमें थोड़ा-बहुत ऐहिक ज्ञान देते हैं लेकिन सदगुरु तो हमें निजस्वरूप का ज्ञान दे देते हैं । जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुःख का प्रभाव न पड़े और परब्रह्म की प्राप्ति हो जाए ऐसा ज्ञान गुरुकृपा से ही मिलता है । उसे प्राप्त करने की भूख जगानी चाहिए । इसीलिये कहा गया है :-
गुरु गोबिन्द दोउ खड़े, काके लागु पाँव ।
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोबिन्द दियो बताय ।।
जब श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि अवतार धरा पर आये, तब उन्होंने भी गुरु विश्वामित्र, वशिष्ठजी तथा सांदीपनी मुनि जैसे ब्रह्मनिष्ठ संतों की शरण में जाकर मानवमात्र को सदगुरु महिमा का महान संदेश प्रदान किया ।
राम, कृष्ण से कौन बड़ा, तिन्ह ने भी गुरु कीन्ह ।
तीन लोक के हैं धनी, गुरु आगे आधीन ।।
हमें भी महापुरुषों- सदगुरुओं के श्रीचरणों में बैठना है ।
– Guru Mahima