(Sant Ramdas ji) संत रामदास काठिया बाबाजी के शिष्य हो गये गरीबदास जी (Garib das Ji)।
वे पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन उनके हृदय में अपने गुरुदेव के प्रति अगाध भक्ति थी परंतु बाबा रामदासजी उनसे बड़ी कठोरता व उपेक्षा भरा बर्ताव करते। शिष्यों को बाबा के इस व्यवहार से बड़ा आश्चर्य होता। वे सोचते कि सभी के साथ प्रेम भरे मीठे वचन बोलने वाले बाबा आखिर गरीबदास (Garib Das) पर बात-बात पर क्यों बरसते हैं ? पर कुछ पूछने की किसी की हिम्मत नहीं होती। बाबा के इस बर्ताव से न तो गरीबदास की श्रद्धा कम हुई और न ही उनका विश्वास डिगा। श्रद्धा,समर्पण और अदभुत विनयशीलता को उन्होंने अपनी भक्ति की परिभाषा बना लिया था।
एक बार तो जैसे बाबा रामदासजी (Baba Ramdas Ji) ने कठोरता की सारी सीमाएँ ही पार कर डालीं। बाबा अन्य साधुओं और शिष्यों के साथ ब्रज की परिक्रमा कर रहे थे।
चौरासी कोस की उस परिक्रमा में गरीबदास जी (Garib Das Ji)को काफी सामान लादकर चलना पड़ रहा था। थके-हारे होने पर भी जहाँ यात्रा रूकती, वहाँ उन्हें चालीस-पचास व्यक्तियों का भोजन बनाना पड़ता। इतना कठिन श्रम करने के बाद भी सभी को खाना खिलाकर ही स्वयं भोजन करने के अपने नियम का वे दृढ़ता से पालन करते थे।
उस दिन भी गरीबदास जी (Garib Das Ji) ने भोजन बनाया और सबको प्रेम से परोसा पर यह क्या ???
आसन पर बैठते ही बाबा रामदासजी (Ramdas Ji) ने रोटी को दूर फेंकते हुए गरजकर कहा : “बेशर्म ! मेरे लिए कच्ची रोटियाँ बनाता है।” जबकि रोटियाँ अच्छी तरह सिकी हुई थीं। इतना कह के वे रुके नहीं, अपनी लाठी उनके सिर पर दे मारी। जिससे गरीबदास के सिर से खून बहने लगा। थका-हारा वह गुरुभक्त दर्द से बुरी तरह चीखा और बेहोश हो गया।
बाबा का यह व्यवहार वहाँ उपस्थित लोगों को अच्छा न लगा पर इस ओर ध्यान न देकर बाबा मजे से एक ओर चलते बने।
होश आने पर गरीबदास जी ने बड़ी आतुरता से बाबाजी को ढूंढा और उनके चरणों पर सिर रखते हुए बोले :”हे मेरे कृपालु गुरुदेव ! हे मेरे आराध्य !! मुझसे अपराध हो गया। क्षमा करें भगवन् !”
शिष्य की श्रद्धा समुद्र की गहराई को भी मात कर गयी, अत्यंत कठोर बर्ताव करने वाले गुरुदेव आज मातृवत् हो उठे।
गरीबदास जी (Garib Das Ji) अपने हृदय से लगाते हुए वे बोले :”बेटा ! सद्गुरु की कठोरता में भी उनका प्रेम है। सद्गुरु की कसौटी में संसार-ताप के विनाश की युक्ति है। मेरी कठोरता से तेरे जन्म-जन्मांतर के पापकर्म तथा अज्ञान के संस्कार नष्ट हो गये हैं। अब तू मेरे आशीर्वाद से परमहंसत्व प्राप्त कर धन्य हो जायेगा।”
~लोक कल्याण सेतु/जुलाई-अगस्त २००७