सदगुरु सदैव अपने शिष्य पर रहमत की बरसात करते ही रहते हैं। धन्य हैं जो गुरु कृपा को पचाते हैं।
सिख गुरु अमरदास जी (Guru Amardas) की उम्र लगभग 105 वर्ष हो गयी थी, तब उनके कुछ शिष्य सोचा करते थे, ʹमैंने गुरु जी की बहुत सेवा की है, इसलिए यदि गुरुगद्दी मुझे सौंप दी जाय तो कितना अच्छा होगा !ʹ
एक दिन अमरदास जी (Guru Amardas Ji) ने शिष्यों को बुलाकर कहाः “तुम लोग अलग-अलग अच्छे चबूतरे बनाओ !”
चबूतरे बन गये पर उनमें से एक भी पसंद नहीं आया। उन्होंने फिर से बनाने को कहा। ऐसा कई बार हुआ। शिष्य चबूतरे बनाते और गुरुजी उन्हें तोड़ने को कहते।
आखिर शिष्य निराश हो गये और सेवा छोड़कर जाने लगे किन्तु शिष्य रामदास अभी भी चबूतरा बनाने में जुटा हुआ था। उन लोगों ने उससे कहाः “पागल का हुक्म मानकर तुम भी पागल क्यों बन रहे हो ? चलो छोड़ दो चबूतरा बनाना।”
रामदास (Ramdas Ji) ने कहाः “अगर गुरु पागल हैं तो किसी का भी दिमाग दुरुस्त नहीं रह सकता। हमें तो यही सीख मिली है कि गुरु ईश्वर का ही दूसरा रूप हैं और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। अगर गुरुदेव सारी जिंदगी चबूतरा बनाने का आदेश दें तो रामदास जिंदगी भर चबूतरा बनाता रहेगा।”
इस प्रकार रामदास (Ramdas Ji) ने लगभग सत्तर चबूतरे बनाये और अमरदास जी ने उन सबको तुड़वाकर फिर से बनाने का आदेश दिया। आखिर गुरु ने उसकी लगन और भक्ति देख उसे छाती से लगा कर कहाः “तू ही सच्चा शिष्य है और तू ही गुरुगद्दी का अधिकारी होने के काबिल है।”
इतिहास साक्षी है कि गुरु अमरदासजी (Guru Amardas Ji) के बाद गुरुगद्दी सँभालने वाले रामदास जी (Guru Ramdas Ji) ही थे।