महात्मा हरिद्रुमत गांधार देश की ओर जा रहे थे । मार्ग में एक ऐसा गाँव पड़ा जहाँ सभी लोग बूढ़े, जवान, स्त्रियाँ और बच्चे भी भगवान को प्रेम करने वाले. भगवान की भक्ति करने वाले थे।
चलते चलते अचानक महाराज को एक बालक के रुदन की आवाज सुनाई दी । जरा रुककर सुना तो पता चला कोई माँ अपने बच्चे को डांट-फटकार रही है ।
महाराज ने दरवाजे पर जाकर पूछा :”माताजी ! क्यों पीट रही हो इस मासूम को ?”
महिला बोली :”महाराज ! क्या कहूँ, पूरे गाँव में केवल एक मेरा ही बालक ऐसा है जो न तो भगवान की पूजा करता है, न प्रार्थना, न कीर्तन, न सत्संग में जाता है, न भगवान को मानता ही है, एकदम घोर नास्तिक जैसा है। इसके कारण हमें अपमानित होना पड़ता है, लोगों की बातें सुननी पड़ती हैं, इसी के कारण अपयश होता है । अब आप ही बताइये क्रोध न करूँ तो क्या करूँ ?
हरिद्रुमत बोले : “माताजी ! प्यार से ही बच्चों की कमियों, गलतियों को दूर किया जा सकता है, क्रोध से नहीं । ज्यादा रोकटोक करने से तो बच्चे विरोधी हो जाते हैं। जब तक बालक छोटा है तब तक उसे प्यार करो। बड़ा हो जाये, दस-बारह, पन्द्रह वर्ष का तो उसे सीख दो, अनुशासन में रखो । जब सोलह वर्ष का हो तब उससे मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए । आप इस बालक को प्रगाढ़ प्रेम, आत्मीयतायुक्त व्यवहार तथा अपनी स्नेहिल निष्ठा से ही सीख दीजिए ।
दूसरा,आप जब जप-ध्यान, पूजा-पाठ करने बैठें तो इसे भी अपने पास बिठा लें । भगवान से प्रार्थना करें कि “हे प्रभु ! इसे भी सदबुद्धि दो कि यह आपकी भक्ति करे। “
बच्चे कहने की अपेक्षा देखकर जल्दी सीखते हैं, उनमें अनुसरण करने का गुण होता है । जैसा देखते हैं वैसा करने लग जाते हैं, फिर चाहें अच्छा हो या बुरा। आपको जप-ध्यान करते देखकर यह भी करने लगेगा । बालक को ईश्वर की ओर ले जाने का सरल मार्ग है ।”
यह कहकर महाराज आगे बढ़ गये ।
उस माता ने महात्मा जी की आज्ञा का पालन किया और बालक को प्रगाढ़ प्रेम दिया । प्रेममूर्ति महात्मा का आशीर्वाद, शुभ संकल्प और माँ के उस अनन्य प्रेम का परिणाम ऐसा हुआ कि वह बालक आगे चलकर महान ज्ञानी उद्दालक ऋषि के नाम से जगत में प्रसिद्ध हुआ।
आप भी अपने बच्चों को किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ ज्ञानी महापुरुष के दर्शन करने व सत्संग सुनने ले जायें और उन्हें प्रेम से समझाएं। भगवन्नाम की दीक्षा दिला दें । आप भी मंत्रजप करें, उन्हें भी अपने पास बिठाकर जप करायें तो उनमें से कोई भी कैसा भी उद्दण्ड क्यों न हो, आपके कुल को जगमगाने वाला कुलदीप बन जायेगा।
~ऋषि-प्रसाद/फ़रवरी 2011