गुरु-सन्देश – जो दृढ़ निश्चयी हैं वे ही जीवन के संग्राम में सफल होते हैं, जीवनदाता की यात्रा में प्रवेश पाकर पूर्ण हो जाते हैं ।
जिस श्रेष्ठ कर्म का पालन हितकर हो, गांधीजी (Gandhi ji) उसे व्रत ही मानते थे ।
उनके अनुसार व्रत का तात्पर्य – ‘अटल निश्चय’। वे अड़चनों और असुविधाओं को लाँघने के लिए व्रतों को आवश्यक मानते थे । यह सद्गुण गांधीजी (Gandhi ji) में बचपन से ही था ।
जब मोहनदास गांधी ८ वर्ष के थे, तब उनके घर में कोई उत्सव था । भोजन के लिए सभी मित्रगण बुलाये गए थे । घर में कई प्रकार के व्यंजन बने थे जिनमें मुख्यतः आम की प्रधानता थी । आमन्त्रण पर सभी मित्र आये परन्तु भूल से उनके एक मित्र को ठीक समय पर सूचना नहीं मिल पायी । अतः वह भोजन में सम्मिलित नहीं हो सका ।
इससे गांधीजी (Gandhi ji) को बड़ा आघात पहुँचा । शिष्टाचार की इस भूल के प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने उस दिन से एक वर्ष तक आम न खाने का व्रत लिया और मित्र तथा माता-पिता आदि के आग्रह करने पर भी व्रत को नहीं तोड़ा ।
सीख : जो दृढ़ निश्चयी होते हैं, वे हजारों विरोधों और प्रलोभनों में भी डिगते नहीं हैं । व्रती दृढ़निश्चयी होता है । दृढ़ संकल्प शक्ति से वह सफलता का वरण करता है । दृढ़ संकल्प शक्ति से वह सफलता का वरण करता है।
-गाँधी जी के शब्दों में…~ “ईश्वर स्वयं व्रत और निश्चय की मूर्ति हैं। वे अपने नियम से एक अणु भी हटे तो वे ईश्वर कहाँ रहेंगे !”
संकल्प – हम भी अपने शुभ संकल्प का दृढ़ता से पालन करेंगे ।
अभिभावकों से : बालक-बालिकाओं के माता-पिता तथा अभिभावकों को चाहिए कि वे फ़िल्मी आकर्षण में, चटोरेपन में बच्चों को आसक्त होने का अवसर न दें ।
🖋लोक कल्याण सेतु /दिस.२०१०